द्वापरयुग की समाप्ति के समय श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी ने यज्ञानुष्ठान के उपयोग को दृष्टिगत उस एक वेद के चार विभाग कर दिये और इन चारों विभागों की शिक्षा चार शिष्यों को दी. ये ही चार विभाग ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के नाम से प्रसिद्ध है.
पैल, वैशम्पायन, जैमिनि और सुमन्तु नामक -चार शिष्यों को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की शिक्षा दी
.1. ऋग्वेद: 2. यजुर्वेद: 3.सामवेद: 4.अथर्ववेद 5.उपनिषद:
वेद का पद्य भाग – ऋग्वेद, अथर्ववेद
वेद का गद्य भाग – यजुर्वेद
वेद का गायन भाग – सामवेद
2. वेदांग – वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं. वेदांग शब्द से अभिप्राय है- ‘जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले’. वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-.
1. शिक्षा, 2.कल्प, 3.व्याकरण, 4.ज्योतिष, 5.छन्द और 6.निरूक्त – ये छ: वेदांग है.
- शिक्षा – इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है.
- कल्प – वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है.
- व्याकरण – इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है.
- निरुक्त – वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है.
- ज्योतिष – इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है. यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है.
- छंद – वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छंद शास्त्र से होता है.
छन्द को वेदों का पाद, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, और व्याकरण को मुख कहा गया है.
3. उपवेद – उपवेद हिंदू धर्म के चार मुख्य माने गए. वेदों (अथर्ववेद, सामवेद, ऋग्वेद तथा यजुर्वेद) से निकली हुयी शाखाओं रूपी वेद ज्ञान को कहते हैं. उपवेद भी चार हैं- 1. आयुर्वेद; 2. धनुर्वेद; 3. गन्धर्ववेद; 4.स्थापत्यवेद.
4. महाकाव्य
1.रामायण
2.महाभारत
- विष्णु पुराण
- भागवत पुराण
- पदम पुराण
- वराह पुराण
- मतस्य पुराण
- कूर्म पुराण
- वामन पुराण
- गरुड़ पुराण
- ब्रम्ह पुराण
- ब्रम्हाण्ड पुराण
- ब्रम्ह वैवर्त पुराण
- शिव पुराण
- लिंग पुराण
- स्कन्द पुराण
- नारदीय पुराण
- अग्नि पुराण
- मार्कंण्डेय पुराण
- भविष्य पुराण
a. चार्वाकदर्शन
2. आस्तिक दर्शन –
7. स्मृति
1. मनुस्मृति, 2. यज्ञ याज्ञवल्क्यस्मृति, 3. पराशरस्मृति, 4. नारदस्मृति, 5. विष्णुस्मृति, 6. बृहस्पतिस्मृति, 7. कात्यायनस्मृति
8. काव्यानि
1. द्रश्यकाव्य- a. नाटक.
2. श्रव्यकाव्यानि- a.गद्यकाव्यानि, b.पद्यकाव्यानि, c.चम्पुकाव्यानि