इस प्रकार गोत्र एक व्यक्ति के पुरुष वंश में मूल प्राचीनतम व्यक्ति को दर्शाता है.
The Gotra is a system which associates a person with his most ancient or root ancestor in an unbroken male lineage.
Brahmins identify their male lineage by considering themselves to be the descendants of the 8 great Rishis ie Saptarshis (The Seven Sacred Saints) + Agastya Rishi
उपरोक्त आठ ऋषि मुख्य गोत्रदायक ऋषि कहलाते है । तथा इसके पश्चात जितने भी अन्य गोत्र अस्तित्व में आये है वो इन्ही आठ मेसे एक से फलित हुए है और स्वयं के नाम से गौत्र स्थापित किया . उदा० माने की
अंगीरा की ८ वीं पीडी में कोई ऋषि क हुए तो परिस्थतियों के अनुसार उनके नाम से गोत्र चल पड़ा। और इनके वंशज क गौत्र कहलाये किन्तु क गौत्र स्वयं अंगीरा से उत्पन्न हुआ है ।
इस प्रकार अब तक कई गोत्र अस्तित्व में है । किन्तु सभी का मुख्य गोत्र आठ मुख्य गोत्रदायक ऋषियों मेसे ही है ।
All other Brahmin Gotras evolved from one of the above Gotras. What this means is that the descendants of these Rishis over time started their own Gotras. All the established Gotras today , each of them finally trace back to one of the root 8 Gotrakarin Rishi.
गौत्र प्रणाली में पुत्र का महत्व | Importance of Son in the Gotra System:
जैसा की हम देख चुके है गौत्र द्वारा पुत्र व् उसे वंश की पहचान होती है । यह गोत्र पिता से स्वतः ही पुत्र को प्राप्त होता है । परन्तु पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता । उदा ० माने की एक व्यक्ति का गोत्र अंगीरा है
और उसका एक पुत्र है । और यह पुत्र एक कन्या से विवाह करता है जिसका पिता कश्यप गोत्र से है । तब लड़की का गोत्र स्वतः ही गोत्र अंगीरा में परिवर्तित हो जायेगा जबकि कन्या का पिता कश्यप गोत्र से था ।
इस प्रकार पुरुष का गोत्र अपने पिता का ही रहता है और स्त्री का पति के अनुसार होता है न की पिता के अनुसार ।
यह हम अपने देनिक जीवन में देखते ही है , कोई नई बात नही !
परन्तु ऐसा क्यू ?
पुत्र का गोत्र महत्वपूर्ण और पुत्री का नही । क्या ये कोई अन्याय है ??
बिलकुल नही !!
देखें कैसे :
गुणसूत्र और जीन । Chromosomes and Genesगुणसूत्र का अर्थ है वह सूत्र जैसी संरचना जो सन्तति में माता पिता के गुण पहुँचाने का कार्य करती है ।
हमने १ ० वीं कक्षा में भी पढ़ा था की मनुष्य में २ ३ जोड़े गुणसूत्र होते है । प्रत्येक जोड़े में एक गुणसूत्र माता से तथा एक गुणसूत्र पिता से आता है । इस प्रकार प्रत्येक कोशिका में कुल ४ ६ गुणसूत्र होते है जिसमे २ ३ माता से व् २ ३ पिता से आते है ।
जैसा की कुल जोड़े २ ३ है । इन २ ३ में से एक जोड़ा लिंग गुणसूत्र कहलाता है यह होने वाली संतान का लिंग निर्धारण करता है अर्थात पुत्र होगा अथवा पुत्री ।
यदि इस एक जोड़े में गुणसूत्र xx हो तो सन्तति पुत्री होगी और यदि xy हो तो पुत्र होगा । परन्तु दोनों में x सामान है । जो माता द्वारा मिलता है और शेष रहा वो पिता से मिलता है । अब यदि पिता से प्राप्त गुणसूत्र x हो तो xx मिल कर स्त्रीलिंग निर्धारित करेंगे और यदि पिता से प्राप्त y हो तो पुर्लिंग निर्धारित करेंगे । इस प्रकार x पुत्री के लिए व् y पुत्र के लिए होता है । इस प्रकार पुत्र व् पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुणसूत्र पर निर्भर होता है माता पर नही ।
अब यहाँ में मुद्दे से हट कर एक बात और बता दूँ की जैसा की हम जानते है की पुत्र की चाह रखने वाले परिवार पुत्री उत्पन्न हो जाये तो दोष बेचारी स्त्री को देते है जबकि अनुवांशिक विज्ञानं के अनुसार जैसे की अभी अभी उपर पढ़ा है की “पुत्र व् पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुणसूत्र पर निर्भर होता है न की माता पर “
फिर भी दोष का ठीकरा स्त्री के माथे मांड दिया जाता है । ये है मुर्खता !
जैसा की पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ में दिखाया गया था ।
http://www.imdb.com/title/tt1891757/
अब एक बात ध्यान दें की स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है ।
इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र). इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही !
और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है । १. xx गुणसूत्र ;-
xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है . तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है ।
२. xy गुणसूत्र ;- xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र . पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है ।
तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्यू की y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है ।
बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था ।
वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र । Y Chromosome and the Vedic Gotra System
अब तक हम यह समझ चुके है की वैदिक गोत्र प्रणाली य गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है ।
उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विधमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल है ।
चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारन है की विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है ।
वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारन यह है की एक ही गोत्र से होने के कारन वह पुरुष व् स्त्री भाई बहिन कहलाये क्यू की उनका पूर्वज एक ही है ।
परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही? की जिन स्त्री व् पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे , तो वे भाई बहिन हो गये .?
इसका एक मुख्य कारन एक ही गोत्र होने के कारन गुणसूत्रों में समानता का भी है । आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी ।
ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता। ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था।
http://www.eurekalert.org/pub_releases/2012-04/nesc-wnm042512.php
http://www.huffingtonpost.com/faheem-younus/why-ban-cousin-marriages_b_2567162.html
http://www.thenews.com.pk/Todays-News-9-160665-First-cousin-marriages
अब यदि हम ये जानना चाहे की यदि चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी आदि बहिनों से विवाह किया जाये तो क्या क्या नुकसान हो सकता है । इससे जानने के लिए आप उन समुदाय के लोगो के जीवन पर गौर करें जो अपनी चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहिनों से विवाह करने में १ सेकंड भी नही लगाते । फलस्वरूप उनकी संताने बुद्धिहीन , मुर्ख , प्रत्येक उच्च आदर्श व् धर्म (जो धारण करने योग्य है ) से नफरत , मनुष्य-पशु-पक्षी आदि से प्रेमभाव का आभाव आदि जैसी मानसिक विकलांगता अपनी चरम सीमा पर होती है ।
ऐसे लोग अक्ल के पीछे लठ लेकर दौड़ते है ।
वैदिक ऋषियों के अनुसार कई परिस्थतियाँ ऐसी भी है जिनमे गोत्र भिन्न होने पर भी विवाह नही होना चाहिए ।
देखे कैसे :
असपिंडा च या मातुरसगोत्रा च या पितु:
सा प्रशस्ता द्विजातिनां दारकर्मणि मैथुने ….मनुस्मृति ३ /५ जो कन्या माता के कुल की छः पीढ़ियों में न हो और पिता के गोत्र की न हो , उस कन्या से विवाह करना उचित है ।
उपरोक्त मंत्र भी पूर्णतया वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है देखें कैसे :
वह कन्या पिता के गोत्र की न हो अर्थात लड़के के पिता के गोत्र की न हो ।
लड़के का गोत्र = पिता का गोत्र
अर्थात लड़की और लड़के का गोत्र भिन्न हो।
Manusmriti 3/5 चित्र देखें (बड़ा करने के लिए चित्र पर क्लिक करें )
हिनक्रियं निष्पुरुषम् निश्छन्दों रोम शार्शसम् ।
क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्वित्रिकुष्ठीकुलानिच । । ………मनुस्मृति ३ /७
जो कुल सत्क्रिया से हिन्,सत्पुरुषों से रहित , वेदाध्ययन से विमुख , शरीर पर बड़े बड़े लोम , अथवा बवासीर , क्षय रोग , दमा , खांसी , आमाशय , मिरगी , श्वेतकुष्ठ और गलितकुष्ठयुक्त कुलो की कन्या या वर के साथ विवाह न होना चाहिए , क्यू की ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करने वाले के कुल में प्रविष्ट हो जाते है ।
आधुनिक आनुवंशिक विज्ञानं से भी ये बात सिद्ध है की उपरोक्त बताये गये रोगादि आनुवंशिक होते है । इससे ये भी स्पष्ट है की हमारे ऋषियों को गुणसूत्र संयोजन आदि के साथ साथ आनुवंशिकता आदि का भी पूर्ण ज्ञान था ।
हिन्दू ग्रंथों के अतिरिक्त किसी अन्य में ऐसी विज्ञानं मिलना पूर्णतया असंभव है., मेरा दावा है !!!!