हिन्दुत्व पर डा.जाकिर नाइक के इरादों को लेकर प्रकाशित हमारे विश्लेषण के तुरंत बाद कई ज़हर भरे सन्देश आए, साथ ही उनकी किताब “Answers to Non- Muslims’ Common Questions about Islam”  की एक प्रति भी मिली, जो उनके छली तर्कों का एक और बेहतरीन नमूना पेश करती है |  हम उनके भाषणों की झलक भी देख चुके हैं, जिन में वे अपनी किताब का पाठ करते नजर आते हैं|  वैसे इस किताब के कई खंडन पहले ही उपलब्ध हैं |
हिंदुत्व के प्रति मिथ्या अवधारणाओं में बढ़ोतरी करने की उनकी इस स्वयं घोषित शोध की साज़िश से हमें आपत्ति है | मुस्लिमों के लिए लिखे गये उनके लेख में हिंदुत्व की अधिक चर्चा रहती है तथा हिंदुत्व के लेख में इस्लाम का ज्यादा बख़ान होता है  | मैं समझ सकता हूं कि उस की इस चकराहट का असल तथ्य वर्तमान की राजनितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां हैं जो ८० करोड़ हिन्दुओं के धर्मान्तरण का आसान आधार उपलब्ध कराती हैं | जिसके लिए डा. जाकिर नाइक द्वारा संचालित इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन और पीस टी.वी प्रयत्नशील हैं और कुछ महीनों पहले ऐलान भी कर चुके हैं कि वे आगामी पांच वर्षों में हिंदुस्तान को दारुल- इस्लाम बनाएंगे|
इसके अलावा, बहुत से भटकों को इस भविष्यवाणी पर विश्वास है कि भारत को पराजित करने पर ही ईसा मसीह फिर से आ पाएंगे और इस दुनिया का अंत होगा, जिस के बाद कयामत के दिन उन्हें जन्नत मिलेगी जहां वो अपनी हूरों के साथ भोग – विलास में हमेशा रहेंगे | संस्कार रहित अविकसित मन और मस्तिष्क के लिए यह प्रलोभन बड़ा ही लुभावना है, जो उनके कुछ सोचने – समझने की क्षमता को भी कुंठित कर देता है | इस लेख में, हम उनके प्रथम प्रश्न – बहुविवाह प्रथा का विश्लेषण करेंगे |
डा. जाकिर नाइक यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि हिन्दू धर्म मूलतः ही बहुविवाह वादी है | अपनी किताब के पृष्ठ ४ पर वह कहते हैं –
“इस पृथ्वी पर स्पष्टतः कुरान ही एक मात्र धार्मिक पुस्तक है जो कहती है कि ‘ सिर्फ एक से शादी करो ‘ | कोई और धार्मिक पुस्तक ऐसी नहीं जिसमें पुरुषों को सिर्फ एक ही पत्नी की आज्ञा हो | कुछ अन्य धर्म ग्रंथों में चाहे वो वेद हों, रामायण, महाभारत, गीता, या बाइबिल हो क्या पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध है ? इन धर्म ग्रंथों के अनुसार कोई व्यक्ति जितनी चाहे शादियां कर सकता है | यह तो बाद में ही, हिन्दू धर्माचार्यों ने और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को एक तक सीमित किया | कई हिन्दू धार्मिक व्यक्तित्व उनके धर्म ग्रंथों के अनुसार अनेक पत्नियां रखते थे | राम के पिता राजा दशरथ की एक से ज्यादा पत्नियां थीं | कृष्ण की अनेक पत्नियां थीं | ” आगे उन्होंने जनगणना के ऐसे आंकड़े दिए हैं जिनके स्रोत सिर्फ वही जानते हैं और जिनके मुताबिक हिन्दुओं में बहुविवाह अधिक प्रचलित है बजाए मुस्लिमों के |
जाकिर नाइक के इस्लाम में बहुपत्नीत्व के वास्तव में मायने क्या हैं ? पूरी उम्र के दौरान कुल मिलाकर चार बीवियों से शादी करना या बीवियों की कुल संख्या को एक समय में चार तक ही बनाए रखना और उस के लिए पुरानी बीवी / बीवियों को तलाक देते जाना और नई शादियां करते जाना या जिन पर इलहाम हुआ हो उनके लिए ९, ११, १६ या उस से भी ज्यादा बीवियों का खास प्रावधान होना या कम उम्र की बच्चियों तक से शादी करना या फिर ऐसी अमर्यादित संख्या में बांदियाँ रखना – जिन्हें कानूनन बीवियों में शुमार न किया जा सके और जनगणना के साथ भी छलावा किया जा सके ?
हम इस पर चर्चा नहीं करेंगे | यह मुद्दे बहुत अधिक संख्या में लोगों द्वारा जिन में महिला अधिकार संगठन और मुस्लिम भी शामिल हैं, तमाम दुनिया में उठाये जा रहे हैं | इन्टरनेट पर इन सन्दर्भों की लंबी फ़हरिस्त मौजूद है |हमारे लेख का मकसद इस मिथक को नष्ट करना है कि ” हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार कोई व्यक्ति जितनी चाहे शादियां कर सकता है | 
आइए, शुरुआत वेदों से करें क्योंकि हिन्दू धर्म में वेदों की मान्यता सर्वोपरि है —-
१.समग्र वेदों में एक भी मंत्र ऐसा नहीं है, जिस में एक से अधिक पत्नी या पति के समर्थन का ज़रा संकेत भी हो |
२. ऋग्वेद के तीनों मंत्र ( १।१२४।७, ४।३।२  तथा  १०।७१।४)   वर्णित करते हैं – ‘ जाया पत्य उशासी सुवासा ‘ अर्थात विद्या विद्वानों के पास उसी प्रकार आती है जैसे एक समर्पित हर्षदायिनी पत्नी सिर्फ अपने पति को ही प्राप्त होती है| ‘ जाया’  तथा ‘ पत्य’  क्रमशः पत्नी तथा पति का अर्थ रखते हैं | यह दोनों शब्द एकवचन में प्रयुक्त हुए हैं, जो सिर्फ एक पति और एक पत्नी के आदर्श रिश्ते को प्रस्तुत करते हैं |
३. ऋग्वेद १। ३ ।३ में परमात्मा को पवित्र और उच्च आचरण वाली समर्पित पत्नी की उपमा दी गई है, जिस में एक पत्नीत्व का आदर्श भी अन्तर्निहित है |
४. ऋग्वेद का मंत्र  १०। १४९। ४ भगवन और भक्त के मध्य प्रेम की तुलना समार्पित पत्नी और पति के प्रेम से करता है | यहां ‘ जाया’ अर्थात पत्नी और ‘ पतिम’ अर्थात पति दोनों ही शब्दों का प्रयोग एकल संख्या में हुआ है, जो स्पष्टतः एक विवाह को सुनिश्चित करता है |
५. ऋग्वेद १०।८५।२० में वधू के लिए निर्देश है कि वह अपने पति के लिए सुख की वृद्धि करे, यहां भी पति और पत्नी दोनों का उल्लेख एकवचन में हुआ है |
६.ऋग्वेद १०।८५।२३ पत्नी और पति को सदैव आत्म- संयम के पालन की शिक्षा देता है | यहां प्रत्यक्षतः दोनों के लिए आत्म- संयम का उल्लेख है और पत्नी और पति दोनों शब्दों का प्रयोग एकल संख्या में हुआ है जो केवल एक विवाह की सिफ़ारिश करता है |
७.विवाह से संबंधित सभी मंत्र द्विवचन सूचक शब्द दंपत्ति को संबोधित करते हैं, जो एक ही पत्नी और एक ही पति के रिश्ते को व्यक्त करता है | जिस के कुछ उदाहरण ऋग्वेद १०।८५।२४, १०।८५।४२ तथा १०।८५।४७ हैं , अथर्ववेद के लगभग सम्पूर्ण १४ वें कांड में विवाह विषयक वर्णन में इसका उपयोग हुआ है | प्रायः मंत्रों में जीवन पर्यंत एकनिष्ठ सम्बन्ध की प्रार्थना की गई है |
कृपया ध्यान दें, संस्कृत में एकवचन और बहुवचन से पृथक द्विवचन का प्रयोग है, ताकि किसी भ्रम की गुंजाइश ना रहे |
८. अथर्ववेद  ७।३६।१ में पति – पत्नी परस्पर कामना करते हैं – ” मुझ को ह्रदय में स्थान दो,जिस से हम दोनों का मन भी सदा साथ रहे | ”
९. अथर्ववेद ७।३८।४ में पत्नी की यह हार्दिक अभिलाषा व्यक्त की गई है कि ” तुम केवल मेरे हो अन्य स्त्रियों की चर्चा भी न करो | ” इससे अधिक बहुपत्नीत्व का निषेध क्या होगा ?
१०. अथर्ववेद ३।३०।२ तथा १४।२।६४ पति और पत्नी को परस्पर समर्पित तथा एकनिष्ठ रहने की हिदायत देते हैं |
११. संभवतः वेदों के ज्ञान प्रदाता परम पिता परमात्मा को भी इस बात का अंदेशा था कि कुछ बन बैठे विशेषज्ञ इस सब की भी अवज्ञा कर के बहुविवाह का औचित्य सिद्ध करने की कोशिश करेंगे, अतः वेदों के कुछ  मंत्रों में बहुविवाह के दुष्परिणामों का वर्णन आया है |
a. ऋग्वेद १०। १०५।८ एक से अधिक पत्नीयों की मौजूदगी को अनेक सांसारिक आपदाओं के सादृश्य कहता है |
b. ऋग्वेद  १०। १०१ ।११  कहता है – दो पत्नियों वाला व्यक्ति उसी प्रकार दोनों तरफ़ से दबाया हुआ विलाप करता है, जैसे रथ हांकते समय उस के अरों से दोनों ओर जकड़ा हुआ घोड़ा हिनहिनाता है |
c. ऋग्वेद १०। १०१ । ११  के अनुसार दो पत्नियां जीवन को निरुदेश्य बना देती हैं |
d. अथर्ववेद ३ । १८।२ में प्रार्थना है –  कोई भी स्त्री सह – पत्नी के भय का कभी सामना न करे |
e. वेदों में बहुविवाह का आरोप लगने वाले अक्सर ऋग्वेद के मंत्र ८। १९ ।३६ का सहारा लेते हैं | ऋग्वेद का यह मंत्र ” वधूनाम” तथा “सतपति” शब्दों को समाहित करता है, परन्तु यहां ‘वधू’ से तात्पर्य दुल्हन से न हो कर सुख प्रदान करने के सामर्थ्य से है और “सतपति”  का अर्थ सज्जनों का पालक है जैसे “भूपति” अर्थात पृथ्वी का पालक होता है | जिस सूक्त में यह मंत्र आया है उसके देवता अथवा मूल भाव से भी व्यक्त होता है कि यह परोपकार तथा दान (दान- स्तुति) से संबंधित है | मंत्र का अर्थ है कि ईश्वर सत्य और भलाई की रक्षा करने वालों को विविध सामर्थ्य प्रदान करता है |
रामायण में बहुविवाह –
यद्यपि यह सही है कि महाराजा दशरथ ने एक से अधिक विवाह किये थे, परन्तु सम्पूर्ण रामायण सार रूप में उनके बहु पत्नी विवाह से उत्पन्न क्लेशों को प्रस्तुत करता है | राजा दशरथ का बहुविवाह करना ही प्रत्येक के लिए कष्टों और विपत्तियों का कारण बना | श्रीराम ” मर्यादा पुरुषोत्तम ” या “आदर्श पुरुष ” माने जाते हैं क्योंकि उन्होंने एक पत्नीव्रत के वैदिक आदर्श को पुनः स्थापित किया और यही अनुकरण उनके भाइयों ने भी किया | हिन्दू धर्म की खूबी ही यही है कि उसका आधार इतिहास नहीं किन्तु सिद्धांत है| हिन्दू धर्म में मात्र किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के करने मात्र से कोई कृत्य आदर्श नहीं बन जाता| इसलिए हिन्दू निःसंकोच कह सकता है कि यदि दशरथ ने ३ विवाह किये तो यह उसकी कमजोरी थी, धर्म का आदर्श नहीं. और राम ने एक पत्नीव्रत का पालन किया, अपने पिता के गलत उदहारण के बावजूद, इसलिए वो हमारे लिए मर्यादा पुरुषोत्तम धर्म ज्योति हैं. बाकी मत वाले भी धर्म का आधार इतिहास न बनाकर सिद्धांत बना लें , तो संसार कितना सुखी हो जाये!
महाभारत में बहुविवाह –
महाभारत काल तक समाज में नैतिक मूल्यों का अत्यंत ह्रास हो चुका था, अतः श्रीकृष्ण के अतिरिक्त महाभारत में ऐसा कोई पात्र नहीं है जिसे आदर्श माना गया हो | अनेक विध ताकतों से श्रीकृष्ण को निशाना बनाकर उनका चरित्र हनन करने के पीछे मूलतः यही कारण है | महाभारत अत्यधिक प्रक्षेपित साहित्य है तथा उसे पूर्णतः प्रमाणिक नहीं माना जा सकता है | मूल ग्रंथ काफ़ी छोटा था जिसमें समय के साथ विस्तार होता गया और बहुत सी चीजें सम्मिलित की जाती रहीं | महाभारत में प्रक्षेपण को रोकने की कोई कारगर विधि नहीं है, जैसी की वेदों में पाई जाती है | फिर भी बारीकी से विश्लेषण द्वारा महाभारत की कुछ प्रचलित कथाओं का मिथ्यत्व आसानी से प्रकट किया जा सकता है, जिसकी सूची मैं यहां दे रहा हूं –
a .श्रीकृष्ण का विवाह केवल रुक्मिणी से हुआ था – श्रीकृष्ण की १६००० पत्नियों की मिथ्या अवधारणा का आधार उस कथा से है जिस में उन्होंने नरकासुर के चंगुल से १६००० कन्याओं को मुक्त किया है | यह कथा अपने आप में संदिग्ध है | इसके अलावा, कथा में यह चर्चा कहीं नहीं है कि श्रीकृष्ण ने १६००० कन्याओं से विवाह किया था, वहां श्रीकृष्ण द्वारा १६००० कन्याओं की रक्षा का उल्लेख है, जिसे सच माना जा सकता है यदि यह कथा सही हो तो | यदि श्रीकृष्ण ने उन सब से विवाह किया होता तो, प्रचलित विधि को संपन्न करके प्रतिदिन अधिक से अधिक चार विवाह ही किये जा सकते थे और इसे देखें तो उन्हें १० वर्ष से भी अधिक समय सिर्फ शादियां करते हुए ही बिताना पड़ता !
b . श्रीकृष्ण ने पिता बनने से पूर्व १२ वर्ष पर्यंत पूर्ण ब्रह्मचर्य की कठोर तपस्या की, इसीलिए तो श्रीकृष्ण सम्पूर्ण मानव समाज के लिए आदर्श महापुरुष हैं | इस परिक्षण काल में गीता के उपदेशक का सम्पूर्ण ध्यान केवल मात्र राष्ट्र – निर्माण पर ही केन्द्रित था |
c . श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग कभी कोई रास – लीला नहीं रचाई | यह सब मनगढंत कल्पनाओं के चमत्कार हैं जो विदेशी दासता के अंध कल में प्रचलित हो गये, जब संघ राज्यों के शासकों ने विदेशियों के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया और स्वयं विलासिता में ड़ूब गये | इसके अतिरिक्त, राधा की सम्पूर्ण कथा ही कपोल- कल्पित है जो सिर्फ ब्रम्हवैवर्त पुराण में ही पाई जाती है जो की भविष्य पुराण की ही भांति एक और अप्रामाणिक पोथी है जिस में श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे आदर्शों को कलंकित किया गया है | राधा का विचार अभी- अभी के समय में खासकर भारतवर्ष  के अंधकार के युग में पनपा है, जब रजवाड़ों के शासक अपने – आप को भगवान श्रीकृष्ण के अवतार मानने और मनवाने पर तुले हुए थे और परंपरागत ब्रह्मचारी के चरित्र को नीचा दिखाकर कामुक गतिविधियों में लिप्त होनें में ही अपना गौरव समझते थे!  महाभारत में कहीं पर भी इन सब का उल्लेख नहीं है |
सामान्य जीवन में बहुविवाह –
यद्यपि इतिहास के कालखंडों में कुछ शासकों द्वारा बहुविवाह किया गया है परन्तु वह शासक वर्ग तक ही सीमित रह पाया और जनसंख्या की विस्तृत मुख्य धारा में नहीं अपनाया गया है |  इसीलिए आज़ादी के बाद एक विवाह के औपचारिक प्रस्तुतीकरण को कानून के रूप में हिन्दू समाज द्वारा बेहिचक अपनाया गया है | हिन्दू धर्म के सभी महापुरुष जो अधिकतर भगवान के बराबर समझे जाते हैं, एक पत्नीव्रती या ब्रम्हचारी ही थे –  विष्णु,शंकर,राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न,हनुमान तथा कृष्ण | अतः यह पूर्णरूपेण मिथ्या है कि हिंदुत्व में बहुविवाह को स्वीकृति दी गई है | इसके विपरीत, वेद स्पष्टतः सिर्फ एक विवाह का ही समर्थन करते हैं, जिसकी प्रवृत्ति समान रूप से जन साधारण तथा हमारे आदर्श पुरुषों में दिखाई देती है |
वेदों के श्रेष्ठ मूल्यों पर आधारित हिन्दू दर्शन में ही खास तौर से एक विवाह की अपेक्षा की गई है और बहुविवाह को त्याज्य समझा गया है |
परिशिष्ट :
इस अतिरिक्त टिप्पणी में हम बहुविवाह की स्वीकृति में डा.जाकिर नाइक द्वारा प्रस्तुत कुछ हेत्वाभासों के बारे में चर्चा करेंगे –
१. नाइक – औरत की औसत जिंदगी मर्द से ज्यादा होती है |
– इस कथन के अनुसार तो बहुपतित्व ( एक पत्नी- अनेक पति ) को मान्यता मिलनी चाहिए, क्योंकि औसत रूप से एक औरत एक से ज्यादा पति रखना चाहेगी अपनी पूरी जिंदगी के निभाव के लिए |
२. नाइक- विश्व में महिलाओं की जनसंख्या पुरुषों की वैश्विक जनसंख्या से ज्यादा है |
-यह पूर्वोक्त कथन को काटता है, यदि हम संयुक्त राष्ट्र संघ के सांख्यिकी विभाग द्वारा प्रकाशित विश्व जनसंख्या के २००८ के आंकड़ों पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि विश्व में पुरुष महिलाओं से २ % ज्यादा हैं | बच्चों और वृद्धों को छोड़कर विवाह योग्य आयु वालों पर भी यही बात लागू है,  तो क्या अब वो बहुपतित्व की वकालत करेगा ?
३. आइए, आगे बढ़ने से पहले सबसे ख़राब लिंग अनुपात के देशों की सूची को देखें  http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_sex_ratio
यहां इस तालिका ( टेबल ) में आप क्षेत्रों  के अनुसार छांट सकते हैं – यहां मौजूद शीर्ष ९ देश जिन में पुरुषों की संख्या महिलाओं से ज्यादा है, सभी मुस्लिम राष्ट्र हैं | जहां जितना ज्यादा इस्लामिक कानून सख्त है – वहीं ज्यादा विषम लिंग अनुपात है |  सउदी अरब अमीरात में मर्द २.७४ गुना ज्यादा हैं औरतों से और क़तर में यह संख्या २.४६ गुना है | भारत और पाकिस्तान भी अपनी मुस्लिम बहुल जनसंख्या के कारण इस सूची में नजदीक का स्थान रखते हैं |
४. नाइक-  श्रद्धालु मुस्लिम औरतों को अपनी अन्य मुस्लिम बहनों को सांझी संपत्ति बनने के बड़े नुकसान से बचाने के लिए थोडा सा व्यक्तिगत नुकसान बरदाश्त करना चाहिए |
–   हम अभी ऊपर आंकड़ें देख चुके हैं – क्या अब डा.नाइक इससे उलट की सलाह देंगे ?
– वैदिक सभ्य समाज में पत्नी के अतिरिक्त प्रत्येक स्त्री को माँ के रूप में ही देखा जाता है | जिसका मूलतत्व ‘ मातृवत् परदारेषु ‘ की भावना है – अर्थात् पत्नी के अतिरिक्त सभी स्त्रियां मेरी मां हैं, इसीलिए किसी के सांझी संपत्ति बनने का प्रश्न ही नहीं उठता | शिवाजी जैसे आदर्श पुरुष, युद्ध बंधक स्त्रियों को भी सम्मान देने के लिए सिर झुका कर उन्हें मां कहते थे !  और ऐसे समाज में जहां स्त्रियों को पूज्य माना जाता हो , विषम लिंग अनुपात का सवाल ही नहीं आता जैसा की मुस्लिम कट्टरपंथी देशों में पाया जाता है |
– महत्त्व कि बात स्त्रियों को संपत्ति कि तरह इस्तेमाल करने की है | डा. नाइक कहता है कि बहुपत्नीत्व, स्त्रियों को सांझी संपत्ति के बजाए थोड़े से व्यक्तिगत नुकसान के साथ, निजी संपत्ति की हैसियत से इस्तेमाल करने की इजाजत देता है, यह थोड़ा सा नुकसान पूरी स्त्री जाति के लिए बहुत बड़ा अपमान है | यदि, आपस में पतियों को बांटना हराम है, तो फिर स्त्री को बाँटना क्यों छोटा सा निजी नुकसान गिना जाए ? वेद स्त्री और पुरुष में कोई फर्क नही रखते और विवाह सहित सभी बातों में समान अधिकार और स्वातंत्र्य देते हैं |
आगे वह ऐसे चार कारण देता है जिनके मुताबिक बहुपत्नीत्व की आज्ञा क्यों दी गई है तथा बहुपतित्व की आज्ञा क्यों नहीं है –
a .इस से बच्चे के पिता की पहचान होती है |
– (यह तो अब डी एन ए DNA परीक्षण से भी संभव है ! )
b .मनुष्य स्वाभाव से ही बहुपत्नीत्वशील है |
-(बहुपतित्व की दोषी स्त्री को पत्थर मारकर मृत्युदंड दिया जाता है – इस के अलावा इसका कोई प्रमाण है ? क्या बहुपत्नीत्व का समर्थन करके पूरी स्त्रीजाति को अपमानित करने की यह बेहद घटिया और शर्मनाक साज़िश नहीं है ? )
c .शारीरिक रचना के तौर पर किसी स्त्री के लिए एक से अधिक पति रखना तथा बच्चों को पालना संभव नहीं है |
– ( धर्म और समाज सेवा के नाम पर एक से अधिक पत्नियों और रखैलों को रखने की एक और बेशर्म दलील है ! )
d . यौन व्याधियों का अधिक खतरा होना |
– ( इसके विपरीत चिकित्सा विज्ञान के अनुसार महिलाओं को एक से अधिक पत्नियां रखने वाले पुरुषों से यौन रोगों के संक्रमण की अधिक संभावना है | कभी चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थी रह चुके डा. नाइक को प्रकाशित करने से पहले कम से कम इस की प्रमाणिकता तो जांच लेनी चाहिए थी, हो सकता है कि शायद उन्हें कभी अभ्यास करने का या पुस्तकें खंगालने का मौका ही ना मिला हो ! )
बुद्धिमान स्वयं ओसामा बिन लादेन के इस प्रशंसक की मनोवृत्ति को समझ सकते हैं | संक्षेप में, बहुपत्नीत्व अनाचार है, जिसे वेदों द्वारा पूर्णतः निन्दित माना गया है | यह स्त्री का अपमान है| आज के युग में इसका समर्थन करना, वो भी एक पढ़े लिखे तथाकथिक डॉक्टर द्वारा, और ऐसे बेशर्म तर्कों द्वारा, मनुष्य के सोच का इस से अधिक पतन का और क्या उदहारण हो सकता है?
वेदों और आदर्श पुरुषों द्वारा निर्देशित हिन्दू धर्म में हमेशा एक विवाह की अवधारणा और आत्म- संयम को ही मनुष्यों का एक मात्र मार्ग माना गया है | बहुविवाह को किसी भी हेतु से उचित ठहराने की कोशिश सम्पूर्ण नारीत्व का तिरस्कार है | ईश्वर ऐसे विकृत दिमागों में सद् बुद्धि प्रदान करे ताकि वे भी वेदों की शीतल छाया के नीचे आ सकें और उनके मन में मातृशक्ति के सम्मान की भावना जागृत हो सके |

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