चाणक्य कहते हैं

वरयेत् कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम्।
रूपशीलां न नीचस्य विवाह: सदृशे कुले।।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में विवाह योग्य और विवाह के लिए अयोग्य स्त्रियों की विशेषताएं बताई हैं। समझदार और श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो उच्चकुल यानी संस्कारी परिवार में जन्म लेने वाली सुसंस्कारी कन्या से विवाह कर लेता है।  ऐसे परिवार की कन्या यदि कुरूप भी तो उससे कर लेना चाहिए। विवाह के बाद कन्या के गुण ही परिवार को आगे बढ़ाते हैं।
पुरुष को विवाह के लिए नारी की बाहरी सुंदरता न देखते हुए मन की सुंदरता और संस्कार देखने चाहिए। यदि कोई कुरूप कन्या संस्कारी हो तो उससे विवाह कर लेना चाहिए। जबकि कोई सुंदर कन्या यदि संस्कारी न हो, अधार्मिक हो, नीच कुल की हो, जिसका चरित्र ठीक न हो तो उससे किसी भी परिस्थिति में विवाह नहीं करना चाहिए। विवाह हमेशा समान कुल में शुभ रहता है।
कोई कन्या सुंदर है, लेकिन वह अधार्मिक चरित्र वाली है तो विवाह के बाद परिवार को तोड़ देती है। ऐसी लड़कियों का स्वभाव व आचरण निम्न ही रहता है। इनसे विवाह करने पर सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है। जबकि धार्मिक और ईश्वर में आस्था रखने वाली संस्कारी कन्या के आचार-विचार भी शुद्ध होंगे जो एक श्रेष्ठ परिवार का निर्माण करने में सक्षम रहती है।


यह नीति पुरुषों पर भी ठीक इसी प्रकार लागू होती है। स्त्रियां ध्यान रखें, जिन पुरुषों ऐसे अवगुण हों, उनसे विवाह नहीं करना चाहिए।


सच्चे मित्र ही हमें सभी परेशानियों से बचा लेते हैं और कठिन समय में मदद करते हैं। हमें कैसे मित्र चुनना चाहिए? इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिस व्यक्ति में अपने परिवार का पालन पोषण करने की योग्यता ना हो, जो व्यक्ति अपनी गलती होने पर भी किसी से न डरता हो, जो व्यक्ति शर्म नहीं करता है, लज्जावान न हो, अन्य लोगों के लिए जिसमें उदारता का भाव न हो, जो इंसान त्यागशील नहीं है, वे मित्रता के योग्य नहीं कहे जा सकते।
हमें कैसे स्थान को अपना निवास, घर बनाना चाहिए इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने 5 बातें बताई हैं। जिस भी स्थान पर ये बातें उपलब्ध वहां रहना सर्वश्रेष्ठ उपाय है और वहां रहने वाला व्यक्ति हमेशा प्रसन्न रहता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं-
धनिक: श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पंचम:।
पंच यत्र न विद्यन्ते तत्र दिवसं वसेत्।।
इसका अर्थ है कि जिस स्थान कोई धनी हो वहां व्यवसाय में बढ़ोतरी होती है। धनी व्यक्ति के आसपास रहने वाले लोगों को भी रोजगार प्राप्त होने की संभावनाएं रहती है।

जिस स्थान पर कोई ज्ञानी, वेद जानने वाला व्यक्ति हो वहां रहने से धर्म लाभ प्राप्त होता है। हमारा ध्यान पाप की ओर नहीं बढ़ता है।


आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
भ्रमन्सम्पूज्यते राजा भ्रमन्सम्पूज्यते द्विज:।
भ्रमन्संपूज्यते योगी स्त्री भ्रमन्ती विनाश्यति।।
इस श्लोक में आचार्य कहते हैं कि यदि कोई राजा अपने राज्य में भ्रमण करता है तो उसे मान-सम्मान प्राप्त होता है। राजा भ्रमण करके ही प्रजा के दुख और दर्द को जान सकता है। प्रजा के दुख जानने के बाद जो राजा उनका निवारण करता है, वह पूजनीय हो जाता है।
यदि कोई स्त्री हमेशा भ्रमण करती रहती है तो उसे समाज में सम्मान की प्राप्ति नहीं होती है। चाणक्य ने लगातार भ्रमण करने वाली स्त्री के विषय में बताया है कि ऐसी स्त्रियां धर्म से विचलित हो जाती हैं।

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