दरअसल…. कुछ लोग इस चौपाई का अपनी बुद्धि और अतिज्ञान के अनुसार ….. विपरीत अर्थ निकालकर तुलसी दास जी और रामचरित मानस पर आक्षेप लगाते हुए अक्सर दिख जाते है….!
यह बेहद ही सामान्य समझ की बात है कि….. अगर तुलसी दास जी स्त्रियो से द्वेष या घृणा करते तो…….
रामचरित मानस में उन्होने स्त्री को देवी समान क्यो बताया…?????
और तो और…. तुलसीदास जी ने तो …
“एक नारिब्रतरत सब झारी। ते मन बच क्रम पतिहितकारी।“
अर्थात, पुरुष के विशेषाधिकारों को न मानकर……… दोनों को समान रूप से एक ही व्रत पालने का आदेश दिया है।
साथ ही …..सीता जी की परम आदर्शवादी महिला एवं उनकी नैतिकता का चित्रण….उर्मिला के विरह और त्याग का चित्रण……. यहाँ तक कि…. लंका से मंदोदरी और त्रिजटा का चित्रण भी सकारात्मक ही है ….!
सिर्फ इतना ही नहीं….. सुरसा जैसी राक्षसी को भी हनुमान द्वारा माता कहना…….. केकेई और मंथरा भी तब सहानुभूति का पात्र हो जाती हैं….. जब, उन्हे अपनी ग़लती का पश्चाताप होता है.
ऐसे में तुलसी दास के शब्द का अर्थ……… स्त्री को पीटना अथवा प्रताड़ित करना है……..आसानी से हजम नहीं होता…..!
साथ ही … इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि…. तुलसी दास जी…… शूद्रो के विषय मे तो कदापि ऐसा लिख ही सकते क्योंकि…. उनके प्रिय राम द्वारा शबरी…..विषाद….केवट आदि से मिलन के जो उदाहरण है…… वो तो और कुछ ही दर्शाते है ……!
तुलसी ने मानस की रचना अवधी में की है और प्रचलित शब्द ज़्यादा आए हैं, इसलिए “ताड़न” शब्द को संस्कृत से ही जोड़कर नहीं देखा जा सकता…..!
फिर, यह प्रश्न बहुत स्वाभिविक सा है कि…. आखिर इसका भावार्थ है क्या….?????
इसे ठीक से समझाने के लिए…… मैं आपलोगों को एक “”” शब्दों के हेर-फेर से….. वाक्य के भावार्थ बदल जाने का एक उदाहरण देना चाहूँगा …..
मान ले कि ……
एक वाक्य है…… “”” बच्चों को कमरे में बंद रखा गया है “”
दूसरा वाक्य …. “” बच्चों को कमरे में बन्दर खा गया है “”
हालाँकि…. दोनों वाक्यों में … अक्षर हुबहू वही हैं….. लेकिन…. दोनों वाक्यों के भावार्थ पूरी तरह बदल चुके हैं…!
ठीक ऐसा ही रामचरित मानस की इस चौपाई के साथ हुआ है…..
यह ध्यान योग्य बात है कि…. क्षुद्र मानसिकता से ग्रस्त ऐसे लोगो को…….. निंदा के लिए ऐसी पंक्तियाँ दिख जाती है …. परन्तु उन्हें यह नहीं दिखता है कि ….. राजा दशरथ ने स्त्री के वचनो के कारण ही तो अपने प्राण दे दिये….
और, श्री राम ने स्त्री की रक्षा के लिए रावण से युद्ध किया ….
साथ ही ….रामायण के प्रत्येक पात्र द्वारा…. पूरी रामायण मे स्त्रियो का सम्मान किया गया और उन्हें देवी बताया गया ..!
असल में ये चौपाइयां उस समय कही गई है जब … समुन्द्र द्वारा श्री राम की विनय स्वीकार न करने पर जब श्री राम क्रोधित हो गए…….. और , अपने तरकश से बाण निकाला …!
तब समुद्र देव …. श्री राम के चरणो मे आए…. और, श्री राम से क्षमा मांगते हुये अनुनय करते हुए कहने लगे कि….
– हे प्रभु , आपने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी….. और, ये ये लोग विशेष ध्यान रखने यानि …..शिक्षा देने के योग्य होते है …. !
दरअसल….. ताड़ना एक अवधी शब्द है……. जिसका अर्थ …. पहचानना .. परखना या रेकी करना होता है…..!
तुलसीदास जी… के कहने का मंतव्य यह है कि….. अगर हम ढोल के व्यवहार (सुर) को नहीं पहचानते ….तो, उसे बजाते समय उसकी आवाज कर्कश होगी …..अतः उससे स्वभाव को जानना आवश्यक है
इसी तरह गंवार का अर्थ …..किसी का मजाक उड़ाना नहीं …..बल्कि, उनसे है जो अज्ञानी हैं… और, प्रकृति या व्यवहार को जाने बिना उसके साथ जीवन सही से नहीं बिताया जा सकता …..।
इसी तरह पशु और नारी के परिप्रेक्ष में भी वही अर्थ है कि….. जब तक हम नारी के स्वभाव को नहीं पहचानते ….. उसके साथ जीवन का निर्वाह अच्छी तरह और सुखपूर्वक नहीं हो सकता…।
इसका सीधा सा भावार्थ यह है कि….. ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु …. और, नारी…. के व्यवहार को ठीक से समझना चाहिए …. और, उनके किसी भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए….!
और, तुलसीदास जी के इस चौपाई को लोग अपने जीवन में भी उतारते हैं……. परन्तु…. रामचरित मानस को नहीं समझ पाते हैं….
जैसे कि… यह सर्व विदित कि …..जब गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं का दूध दूहा जाता है.. तो, दूध दूहते समय यदि उसे किसी प्रकार का कष्टि हो रहा है ….अथवा , वह शारीरिक रूप से दूध देने की स्थिति में नहीं है …तो, वह लात भी मार देते है…. जिसका कभी लोग बुरा नहीं मानते हैं….!
सुन्दर कांड की पूरी चौपाई कुछ इस तरह की है…..
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं।
मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर सूद्र पशु , नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी.. और, सही रास्ता दिखाया ….. किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है…!
क्योंकि…. ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री…….. ये सब शिक्षा तथा सही ज्ञान के अधिकारी हैं ॥3॥
अर्थात…. ढोल (एक साज), गंवार(मूर्ख), शूद्र (कर्मचारी), पशु (चाहे जंगली हो या पालतू) और नारी (स्त्री/पत्नी), इन सब को साधना अथवा सिखाना पड़ता है.. और, निर्देशित करना पड़ता है…. तथा, विशेष ध्यान रखना पड़ता है ॥
इसीलिए….
बिना सोचे-समझे आरोप पर उतारू होना …..मूर्खो का ही कार्य है… और , मेरे ख्याल से तो….ऐसे लोग भी इस चौपायी के अनुसार….. विशेष साधने तथा शिक्षा देने योग्य ही है ….