पुरानी मान्यता है कि देवी-देवता में जिस तरह के गुण होते हैं, उन्हें उसी गुण वाला कोई पशु या पक्षी वाहन के रूप में दिया गया है। यही कारण है कि उनके वाहन भी अलग-अलग हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में हर एक देवी या देवता के विशेष वाहन का ब्यौरा मिलता है, जैसे- देवी भागवत के अनुसार लक्ष्मी का वाहन उल्लू, दुर्गा का सिंह और शिवपुराण के अनुसार गणेश का चूहा, शिव का वृषराज नंदीश्वर हैं। अध्यात्मिक दृष्टिकोण से इन वाहनों के रूप में बहुत ही अद्भुत रहस्य और सूक्ष्म प्रेरणाएं छिपी हैं, जिन्हें हर एक को जानना चाहिए। गणेशजी का वाहन स्वतंत्र स्थिति में अस्थिर होने का प्रतीक है। मन रूपी चूहे की एकाग्र हो जाने पर संसार में सभी सुखों की प्राप्ति होती है और इसी से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। आत्मज्ञान से चंचलता पर लगाम लगती है। कहा भी गया है कि इंसान ही इंसान के बंधन और मोक्ष का कारण है।

1. शिवजी का वाहन वृषराज नंदीश्वर धर्म का प्रतीक है। नंदी का सफेद रंग सत्वगुण को बताता है और नंदी के चार पैर धर्म के चार स्तंभ-दया, दान, तप व शौच हैं। इनका पालन करके हम शिवलोक पा सकते हैं।
2. विष्णु का वाहन गरुड़ दूर दृष्टि के लिए प्रसिद्ध है। अद्वितीय सामर्थ्य के कारण दूर तक उड़ने में सक्षम होता है। गरुड़ ही वेद का प्रतीक है। इसमें कायाकल्प करने की अद्भुत क्षमता है।
मृत्यु के देवता यमराज का वाहन भैंसा है, जो देखने में भयंकर लगता है। इसे प्रेत का प्रतिरूप मानने के कारण इसे देखना अशुभ माना गया है।
3. लक्ष्मी का वाहन उल्लू अध्यात्मिक दृष्टि से अंधता का प्रतीक है। सांसारिक जीवन मे लक्ष्मी यानी धन-दौलत के पीछे बिना सोचे-समझे भागने वाले इंसान को अत्मज्ञान रूपी सूर्य को नहीं देख पाता है।
4. सरस्वती का वाहन हंस पक्षियों के राजा के रूप में पूज्य है। मोती चुगना उसकी विशेषता है। इन गुणों को अपनाकर ब्रह्मा पद पाया जा सकता है।
5. दुर्गा का वाहन सिंह बल और पौरुष का प्रतीक है। सिंह हिंसक प्राणी है, इसलिए देवी के उपासक में सिंहत्व के गुण आ जाते हैं। दुर्गा के उपासक शक्तिशाली होकर, मदांध भी होते देखे गए हैं। अपने शत्रुओं का दमन करने में वे समर्थ होते हैं।

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