पंचमुखी महादेव के दर्शन काफी दुर्लभ है क्योंकि… अधिकांशतः महादेव की शिवलिंग रूप में ही पूजा की जाती है….!
परन्तु …. देवाधिदेव महादेव के प्रतीकात्मक रूप से …….पाँच मुख हैं.. तथा, दुर्वासा ऋषि द्वारा रचित …..शैवागम शास्त्रों में इनकी विस्तृत व्याख्या है…….!
दरअसल…. महादेव के ये पांचो मुख….. हमारी प्रकृति के मूल पाँच तत्वों के प्रतीक हैं…… यथा…. सद्योजात (जल)…..वामदेव (वायु)……. अघोर (आकाश)…..तत्पुरुष (अग्नि)….. एवं ईशान (पृथ्वी) ….!
और… अब यह वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध है कि…. प्रकृति इन्ही पांच मूल तत्वों से मिलकर बनी है….!
साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह है कि….. व्यवहारिक रूप से योग साधना करने वाले सभी योगियों को पंचमुखी महादेव के दर्शन……. गहन ध्यान में एक श्वेत रंग के पंचमुखी नक्षत्र के रूप में होते हैं….. जो , एक नीले आवरण से घिरा होता है…… तथा, यह नीला आवरण भी एक सुनहरे प्रकाश पुंज से घिरा होता है…..|
इस तरह…. ध्यान साधना में योगी पहले उस सुनहरे आवरण को……फिर नीले प्रकाश को……..फिर उस श्वेत नक्षत्र का भेदन करता है…..|
इस तरह ….. उसकी स्थिति…. कूटस्थ चैतन्य में हो जाती है|…. परन्तु, यह योगमार्ग की सबसे बड़ी साधना है…..|
दरअसल……. यह हमारे पुरे ब्रह्माण्ड में फैला अनंत विराट श्वेत प्रकाश पुंज ही क्षीर सागर है…… जहां, भगवान नारायण निवास करते हैं…..|
इन्ही श्वेत., नीले एवं सुनहरे प्रकाश पुंजों को आप……. शिवजी के तीन नेत्र कह सकते हैं……. जिसमे से …. सुनहरे रंग के प्रकाशपुंज को….. प्रभु महाकाल का तीसरा नेत्र कह सकते हैं…… जो कभी कभार ही खुलता है और बेहद विध्वंसक होता है…!
अगर मैं इसे आध्यात्म से इतर……. शुद्ध वैज्ञानिक भाषा में बताऊँ तो…… प्रभु महाकाल के तीसरे नेत्र का सुनहरा रंग…….. अंतरिक्ष में तारा विस्फोट ( सुपरनोवा ) से पैदा होने वाली सुनहरी प्रकाश पुंज है….. जो किसी भी चीज को जला डालने की क्षमता रखती है….. तथा….. लाखों प्रकाश वर्ष प्रति सेकेण्ड की गति से आगे बढती है…!
यह हम हिन्दू सनातन धर्मियों के लिए कितने गर्व और ख़ुशी की बात है कि…… आज से लाखों साल पहले ही … हमारे ऋषि-मुनियों को ….. सुपरनोवा एवं गामा किरणों तथा उसकी विध्वंसक शक्तियों का सम्पूर्ण ज्ञान था…. और, उन्होंने देवाधिदेव महादेव के त्रिनेत्र के माध्यम से इसकी बिलकुल सटीक व्याख्या की थी….!
परन्तु यदि ….. इसी बात को मैं आध्यात्म के सहारे समझाने का प्रयास करूँ तो…….
“ॐ तत् सत्” ही……. तीनों रंगों का प्रतीक है………… जिसमे से सुनहरा प्रकाश ॐ है…… क्योंकि, यह वह स्पंदन है जिससे समस्त सृष्टि बनी है….|
साथ ही….. नीला रंग……. ‘तत्” यानि कृष्ण-चैतन्य या परम-चैतन्य है…….|
एवं….. ‘सत्’ श्वेत रंग स्वयं परमात्मा का प्रतीक है….|
यहाँ तक कि…… हम हिन्दुओं के इसी मान्यता को आधार बनाकर……….. ईसाई मत में भी …….. ‘Father’, ‘Son’ and the ‘Holy Ghost’ ……….इन तीन शब्दों का प्रयोग किया गया गया है……|
दरअसल …… यह और कुछ नहीं बल्कि…….. यह ‘ॐ तत्सत्’ का ही व्यवहारिक अनुवाद है…….|
जिसमे ……..
Holy Ghost का अर्थ …….ॐ है,
Son का अर्थ है……… कृष्ण-चैतन्य,
और,
Father का अर्थ है ………स्वयं परमात्मा…. अर्थात , देवाधिदेव महादेव….!