साथ ही क्या आप जानते हैं कि……. हमारे प्राचीन भारत का नाम……”जम्बूदीप” था….?????
परन्तु….. क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि….. हमारे भारत को “”जम्बूदीप”” क्यों कहा जाता है … और, इसका मतलब क्या होता है …..??????
दरअसल….. हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि …… भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा………????
क्योंकि…. एक सामान्य जनधारणा है कि ……..महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ……… भरत के नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा…… परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है…!
लेकिन…….. वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात…… पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है……।
आश्चर्यजनक रूप से……… इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया……….जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर…….. अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था….।
परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि…… जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि…….. प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात …….महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था….।
लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये…. इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ….।
अथवा …..दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि…… जान बूझकर …. इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी……।
परन्तु … हमारा “”जम्बूदीप नाम “” खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ….. जिसका अर्थ होता है ….. समग्र द्वीप .
इसीलिए…. हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा… विभिन्न अवतारों में…. सिर्फ “जम्बूद्वीप” का ही उल्लेख है…. क्योंकि…. उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था…
साथ ही हमारा वायु पुराण …….. इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है…..।
वायु पुराण के अनुसार……………अब से लगभग 22 लाख वर्ष पूर्व …..त्रेता युग के प्रारंभ में ……. स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने…….. इस भरत खंड को बसाया था…..।
चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था……… इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था……. जिसका लड़का नाभि था…..!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम…….. ऋषभ था….. और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे …… तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम…… “भारतवर्ष” पड़ा….।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने ……. अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को……… संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था….।
राजा का अर्थ उस समय…….. धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था…….।
इस तरह ……राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक …..अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ……. राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया….. और, वही ” भारतवर्ष” कहलाया………।
ध्यान रखें कि….. भारतवर्ष का अर्थ है……. राजा भरत का क्षेत्र…… और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ……सुमति था….।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है….—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए….. रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि…..
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ……. तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी…. संकल्प करवाते हैं…।
हालाँकि….. हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं… और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र …… मानकर छोड़ देते हैं……।
परन्तु…. यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो…..उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है……।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि…….. -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं….. क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है…..।
इस जम्बू द्वीप में……. भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात….. ‘भारतवर्ष’ स्थित है……जो कि आर्याव्रत कहलाता है….।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा……. हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं……।
परन्तु ….अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि …… जब सच्चाई ऐसी है तो….. फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से…. इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है….?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि …… शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ……इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ……. शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है…. अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा… ।
परन्तु….. जब हमारे पास … वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है ………और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि….. धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें….?????
सिर्फ इतना ही नहीं…… हमारे संकल्प मंत्र में…. पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि…….. अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है……।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि…. एक तरफ तो हम बात ……..एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ……… परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं….!
आप खुद ही सोचें कि….यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है……..?????
इसीलिए …… जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ….. पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ……….तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है………।
हमारे देश के बारे में ………वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है…..—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:…..।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ……… हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है…..।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि……हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है….।
ऐसा इसीलिए होता है कि….. आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ….. और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है……….. परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें….. तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।
और…..यह सोच सिरे से ही गलत है….।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि…. राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है…..।
परन्तु…. आश्चर्य जनक रूप से …….हमने यह नही सोचा कि….. एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ……आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है…..?
विशेषत: तब……. जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे…. और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था….।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में …….सिर्फ इतना काम किया कि ……..जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ….उन सबको संहिताबद्घ कर दिया…।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा…….और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि…. राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है…।
और…. ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं……. इसीलिए…. अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए….।
क्योंकि….. इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है…… जैसा कि इसके विषय में माना जाता है…….. बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है…..।