यज्ञ के पीछे एक सांइटिफिक कारण होता है क्योँकि यज्ञ मेँ सब जड़ी बूटियाँ ही डाली जाती हैँ। आम की लकड़ी, देशी घी, तिल, जौँ, शहद, कपूर, अगर तगर, गुग्गुल, लौँग, अक्षत, नारियल शक्कर और अन्य निर्धारित आहूतियाँ भी बनस्पतियाँ ही होती हैँ।

नवग्रह के लिए आक, पलाश, खैर,शमी,आपामार्ग, पीपल, गूलर, कुश, दूर्वा आदि सब आयुर्वेद मेँ प्रतिष्ठित आषधियाँ हैँ। यज्ञ करने पर मंत्राचार के द्वारा न सिर्फ ये और अधिक शक्तिशाली हो जाती हैँ बल्कि मंत्राचार और इन जड़ीबूटियोँ के धुएँ से यज्ञकर्ता/ यजमान / रोगी की आंतरिक बाह्य और मानसिक शुद्धि भी होती है। साथ ही मानसिक और शारीरिक बल तथा सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है।

अधार्मिक, नास्तिक, तर्कवादी और पश्चिमी सभ्यता के चाटुकार आधुनिकतावादी और अतिवैज्ञानिक लोग यज्ञ के लाभ को नकारते हैँ परन्तु यज्ञ के मूल को नहीँ समझते ।

हमारे पूर्वजोँ ने इसे यूँ ही महत्व नहीँ दिया, यज्ञ मेँ जो आहूतियाँ देते है, तब यज्ञ की अग्नि मेँ या इतने हाई टेम्परेचर मेँ Organic material जल जाता है और inorgnic residue शेष रह जाता है जो दो प्रकार का होता है। एक ओर कई complex chemical compounds टूट कर सिम्पल या सरल रूप मेँ आ जाते है वहीँ कुछ सरल और जटिल react कर और अधिक complex compound बनाते हैँ। ये सब यज्ञ के धुएँ के साथ शरीर मेँ श्वास और त्वचा से प्रवेश करते हैँ और उसे स्वस्थ बनाते हैँ।
इसी प्रकार यज्ञ की शेष भभूत सिर्फ चुटकी भर माथे पर लगाने और खाने पर बेहद लाभ देती है क्योँकि micronised/ nano particles के रूप मेँ होती है और शरीर के द्वारा बहुत आसानी से अवशोषित(absorb) कर ली जाती है।

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