दोस्तों सत्य को अपने निजी स्वार्थ हेतु कुचल डालने वालो की कोई कमी नही है ! ऐसी प्रजाति प्राचीन युगों से सदा समय समय पर अस्तित्व में आती रही है । इस युग मे मैं बात कर रहा हूँ उन दुष्टो की जो हमारी प्रभु की निशानी “राम-सेतु ” को तोड़ने पर तुली हुई है क्योंकि इन दुष्टो के पापा अमेरिका ने इनको जोरदार लोभ दिया हुआ है।
ये लोग राम सेतु को तोड़ कर इसका मलबा अमेरिका को बेचना चाहतें है क्योंकि सेतु के आसपास तथा निचे के हिस्सों में काफी मात्रा में युरेनियम उपस्थित है जिससे हजारो सालों तक उचित मात्रा में कम दाम पर बिजली बनाई जा सकती है |
इन लोगो का जब विरोध किया जाता है तो ये कहते है की कोन है राम? ये कब हुए ? अरे सुअरो तुमने जब जब सत्य को झुटलाया है तुम्हारे कान के निचे थाप पड़ा है |

->इन दुष्टो ने एक समय श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका को भी झुटलाया था परन्तु परिणाम क्या निकला ?
 सत्य और ईश्वर पर आस्था रखने वाले लोगो ने इसके संदर्भ में शोध व अध्ययन किये और पूरी की पूरी नगरी समुद्र के निचे पाई गई । इन दुष्टो की शकल तो तब देखने वाली थी जब गोरी चमड़ी वाले इन के पापाओं ने भी इस बात पर मुहर लगाई और कार्बन डेटिंग द्वारा नगरी के अवशेषों के आयु लगभग 12000 वर्ष बताई  |

-> इन दुष्टो ने एक समय महाभारत के युद्ध को भी नाकारा, परिणाम क्या रहा? शोध के दोरान कई प्रमाण सामने आये तथा एक गोरी चमड़ी वाले भाईसाब ने इस बात को मुहर लगाई तब इन नादानों ने मानी |
Julius Robert Oppenheimer जिन्हें परमाणु बम का जनक भी कहा जाता है | वैदिक सभ्यता में अत्यधिक रूचि के कारण  इन्होने अपने एक मित्र Arthur William Ryder, जोकि University of California, Berkeley में संस्कृत के  प्रोफेसर थे, के साथ मिल कर  1933 में भगवद गीता और महाभारत का पूरा अध्यन किया | और बम बनाया 1945 में । परमाणु बम जैसी किसी चीज़ के होने का पता भी इनको भगवद गीता तथा महाभारत से ही मिला इसमें कोई संदेह नहीं |

-> इन दुष्टो ने एक समय देव नदी सरस्वती को भी नकारा था, परिणाम क्या निकला ?
 भारत की 7 प्रमुख नदियाँ मानी जाती है जो इस प्रकार है : गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, शिप्रा, गोदावरी तथा कावेरी । अब तक सरस्वती नदी को छोड़ कर बाकि समस्त नदियाँ हमारे पास थी । सरस्वती नदी का विवरण ऋग्वेद से लेकर पुराणो तक में कई  बार आया है | महाभारत के समय में हुई भोगोलोक उठा पठक  के पश्चात इस नदी ने अपना मार्ग राजस्थान की भूमि के निचे बना लिया था और राजस्थान के जैसलमेर में इस नदी का रेतीले धोरो को चिर कर पुनः प्राकट्य हुआ है |

-> इन दुष्टो ने एक समय महर्षि भरद्वाज रचित विमान शास्त्र को भी कोई हंसी मजाक की किताब माना, परिणाम क्या निकला ?
जब गोरी चमड़ी वालो ने इसका अध्ययन किया तो वो भी चक्कर खा कर गिर पड़े | और अध्ययन मे पाया की इसमें न केवल इसमें विमान निर्माण अपितु अनेक प्रकार के विमानों तथा उनसे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख है जो आधुनिक विमान पद्धति से मेल खाता है और हर प्रकार से इससे इक्कीस ही है कम नही है |
1. शक्त्युद्गम – बिजली से चलने वाला। 
2. भूतवाह – अग्नि, जल और वायु से चलने वाला। 
3. धूमयान – गैस से चलने वाला। 
4. शिखोद्गम – तेल से चलने वाला। 
5. अंशुवाह – सूर्यरश्मियों से चलने वाला। 
6. तारामुख – चुम्बक से चलने वाला। 
7. मणिवाह – चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला। 
8. मरुत्सखा – केवल वायु से चलने वाला। 

> इन दुष्टो ने हमेशा से भारतीय महान संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया है, परन्तु परिणाम क्या निकला ? आज पूरा विश्व भारतीय योग विद्या का दीवाना है योग पर विदेशो में कई फिल्मे बन चुकि है (यहाँ देखे) , सेंकडो योग सेण्टर खुल चुके है, हजारो वेबसाईटे  बन चुकी है |  यहाँ देखे : http://www.innerworldsmovie.com/
http://www.breathetrue.com/
http://www.indiegogo.com/projects/township-yogi
ये बेचारे योग सिखाने का दावा करते है जो खुद कुछ सेकड़ों वर्ष पूर्व भारत के संपर्क में आने तक योग की abcd भी नही जानते थे  परन्तु भोग की a to z जानते थे |
संस्कृत सभी भाषाओ के माँ है  इसका लोहा मान कर अब नासा कंप्यूटर की भाषा संस्कृत को बनाने की सोच रही है और अन्तरिक्ष में ॐ ध्वनी का संचार करने का विचार कर रही है  |
यहाँ देखे :  
http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl
http://post.jagran.com/NASA-to-use-Sanskrit-as-computer-language-1332758613
http://www.ibtl.in/news/international/1815/nasa-to-echo-sanskrit-in-space-website-confirms-its-mission-sanskrit/

नीच अंग्रेजों के दोगले स्वभाव का एक और उदाहरण देखो दोस्तों:
ये  एक तरफ तो स्वयं संस्कृत को सहर्ष स्वीकारते है तथा अपने नवयुवकों को संस्कृत में पारंगत होने का पाठ पढाते है, कई किताबे भी लिख चुके है (यहाँ देखेंऔर दूसरी तरफ भारत में चल रही अपनी स्कूल (क्रिश्चन मिशनरी) में संस्कृत पर प्रतिबंध लगाते है । ये बेटे संस्कृत का लाभ अकेले अकेले उठाना चाहते है |


मेरा सवाल अपने भारतीय भाइयों से है वो इन अंग्रेजों की  स्कूलो में दाखिला लेते ही क्यूँ है ?
ऐसी स्कूलो का ही दुष्परिणाम है की यहाँ बाल्यावस्था में घुसते तो भारतीय है परन्तु 5-6 वर्षों के बाद निकलते विदेशी है । फिर ये अजीब अजीब हरकतें करते है जैसे yo-yo की आवाज़ निकालना, पेंट निचे बांधना आदि। मेरे ख्याल में ये कोई मानसिक बीमारी है ।
मेने कई ऐसे लोग भी देखे है जो कहते है की हमें चन्द्रगुप्त मोर्य “सीरियल” आने से पूर्व तक हमें यह पता भी नही था की हमारे देश में भी चाणक्य जैसे रियल हीरो हुए। कितने शर्म की बात है जबकि हमारे देश में सदा रियल हीरो ही पैदा हुए है | मुझे तो चन्द्रगुप्त मोर्य के अचानक बंद होने का संदेह भी इन दुष्टो पर ही जाता है क्योंकि ये सिरिअल भारत की एकता व अखंडता की बात करता था |

> इन दुष्टो ने अब श्री राम-सेतु को निशाना बनाया है | कुत्ते की पूंछ टेढ़ी ही रहती है ये इसका जीवित उदाहरण है | रामायण के साथ साथ राम सेतु का वर्णन स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण तथा ब्रह्म पुराण में भी मिलता है | तथा इसके अतिरिक्त कालीदास की रचना  रघुवंशम्  में भी इसका उल्लेख है |
श्री वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के 22 वें अध्याय में लिखा है कि विश्वकर्मा के पुत्र वानर श्रेष्ठ नल के नेतृत्व में वानरों ने मात्र पांच दिन में सौ योजन लंबा तथा दस योजन चौडा पुल समुद्र के ऊपर बनाकर रामजी की सेना के लंका में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। यह अपने आप में एक विश्व-कीर्तिमान है। आज के इस आधुनिक युग में नवीनतम तकनीक के द्वारा भी इतने कम समय में यह कारनामा कर दिखाना संभव नहीं लगता। 

श्रीराम के जीवन से जुडी ये फिल्म  तथा वेबसाईट अवश्य देखें। दिल्ली निवासी श्री राम अवतार ने 31 वर्षो की अपनी कठिन तपस्या द्वारा रामायण व पुराणो में वर्णित 290 स्थानों की खोज की है जहाँ श्रीराम सीताजी तथा भाई लक्ष्मण के साथ वनवास काल में गये अथवा रहे ।
http://www.shriramvanyatra.com/index_2.aspx

  
स्कन्द पुराण के ब्रह्मखण्ड में इस सेतु के माहात्म्य का बडे विस्तार से वर्णन किया गया है। नैमिषारण्य में ऋषियों के द्वारा जीवों की मुक्ति का सुगम उपाय पूछने पर सूत जी बोले – 
दृष्टमात्रेरामसेतौमुक्ति: संसार-सागरात्। हरे हरौचभक्ति: स्यात्तथापुण्यसमृद्धिता। 
रामसेतु के दर्शन मात्र से संसार-सागर से मुक्ति मिल जाती है। भगवान विष्णु और शिव में भक्ति तथा पुण्य की वृद्धि होती है। इसलिए यह सेतु सबके लिए परम पूज्य है।

स्कन्द पुराण के सेतु – माहात्म्य में धनुष्कोटितीर्थ का उल्लेख भी है – 
दक्षिणाम्बुनिधौपुण्येरामसेतौविमुक्तिदे। धनुष्कोटिरितिख्यातंतीर्थमस्तिविमुक्तिदम्॥ 
( दक्षिण-समुद्र के तट पर जहां परम पवित्र रामसेतु है, वहीं धनुष्कोटि नाम से विख्यात एक मुक्तिदायक तीर्थ है। ) इसके विषय में यह कथा है – भगवान श्रीराम जब लंका पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त भगवती सीता के साथ वापस लौटने लगे तब लंकापति विभीषण ने प्रार्थना की – प्रभो ! आपके द्वारा बनवाया गया यह सेतु बना रहा तो भविष्य में इस मार्ग से भारत के बलाभिमानी राजा मेरी लंका पर आक्रमण करेंगे। लंका-नरेश विभीषण के अनुरोध पर श्रीरामचन्द्रजी ने अपने धनुष की कोटि (नोक) से सेतु को एक स्थान से तोडकर उस भाग को समुद्र में डुबो दिया। इससे उस स्थान का नाम धनुष्कोटि हो गया।

यह पुल इतना मज़बूत था कि रामचरितमानस के लंका कांड के शुरुआत में ही वर्णन आता है कि – बॉधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन थी और चौड़ाई दस योजन थी। 

दशयोजनविस्तीर्णं शतयोजनमायतम्। ददृशुर्देवगन्धर्वा नलसेतुं सुदुष्करम्।। (6/22/76),
सेतु बनाने में हाई टेक्नालाजी प्रयोग हुई थी इसके वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं, 
जैसे – पर्वतांर्श्च समुत्पाट्य यन्त्नै: परिवहन्ति च। 
(कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा – समुद्रतट पर ले आए)। 
इसी प्रकार एक अन्य जगह उदाहरण मिलता है –
 सूत्राण्यन्ये प्रगृहृन्ति हृयतं शतयोजनम्। (6/22/62)
 (कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से – एक सीध में हो रहा था।
  


महान आचार्य चाणक्य ने एक बार कहा था की जब कभी कोई विदेशी व्यक्ति तुम्हारे देश अथवा राज्य पर शासन करने लगे तो सचेत हो जाओ अन्यथा उन देश की सभ्यता का पतन निश्चित है ।  
मूर्खो समय रहते कुर्सी की इस ओछी राजनीति से बाज आ जाओ | 

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