सर पर शिखा अथवा चोटी का महत्व

क्या आप जानते हैं कि…. हमारे हिन्दू सनातन धर्म में “”सर पर शिखा अथवा चोटी”” रखने को…. इतना अधिक महत्व क्यों दिया गया है…?????

हम में से लगभग हर लोग इस बात से अवगत हैं कि….. हमारे हिंदू सनातन धर्म में शिखा के बिना कोई भी धार्मिक कार्य पूर्ण नहीं होता…!

यहाँ तक कि….. हमारे भारतवर्ष में सिर पर शिखा रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि……. अपने सर पर शिखा रखने को… हम आर्यों की पहचान तक माना गया है…!!

लेकिन, दुर्भाग्य से वामपंथी मनहूस सेक्यूलरों द्वारा …. प्रपंचवश इसे धर्म से जोड़ते हुए ….. इसे दकियानूसी एवं रूढ़िवादी बता दिया गया …

और… आज स्थिति यह बन चुकी है कि….. अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े हिन्दू भी ….. सर पर शिखा रखने को एक दकियानूसी परम्परा समझते हैं …. और, सर पर शिखा नहीं रखकर …. खुद को आधुनिक प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं…!!

लेकिन….

आप यह जानकार हैरान रह जायेंगे कि….. “”सर पर शिखा”” रखने का कोई आध्यात्मिक कारण नहीं है…..

बल्कि….. विशुद्ध वैज्ञानिक कारण से ही….. हमारे हिन्दू सनातन धर्म में ….. शिखा रखने पर जोर दिया जाता है…!

दरअसल…. हमारे हिन्दू सनातन धर्म में …..प्रारंभ से ही शिखा को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है…. तथा, हम हिन्दुओं के लिए इसे एक अनिवार्य परंपरा माना जाता है ….. क्योंकि… इससे व्यक्ति की बुद्धि नियंत्रित होती है।
राज की बात यह है कि….

जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है…… वह स्थान शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है…. जो मनुष्य के मस्तिष्क को संतुलित रखने का काम भी करती है।

वैज्ञानिक दृष्टि से ….. सिर पर शिखा वाले भाग के नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है…. जो कपाल तन्त्र की सबसे अधिक संवेदनशील जगह होती है…. तथा, उस भाग के खुला होने के कारण वातावरण से उष्मा व विद्युत-चुम्बकी य तरंगों का मस्तिष्क से आदान प्रदान करता है।

ऐसे में अगर शिखा ( चोटी) न हो तो……. वातावरण के साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है….!

इस स्थिति में….. शिखा इस ताप को आसानी से संतुलित कर जाती है….. और , ऊष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से ऊष्मा के स्वतः आदान – प्रदान को रोक देती है… जिससे , शिखा रखने वाले मनुष्य का मस्तिष्क…. बाह्य प्रभाव से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होता है…. और, उसका मस्तिष्क संतुलित रहता है…!!

धर्मग्रंथों के अनुसार ……… शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए…!

और, इसका वैज्ञानिक पहलू यह है कि…..हमारे शरीर में पांच चक्र होते हैं… तथा, सिर के बीचों बीच मौजूद सहस्राह चक्र को प्रथम ….. एवं, ‘मूलाधार चक्र’ जो रीढ़ के निचले हिस्से में होता है, उसे शरीर का आखिरी चक्र माना गया है…!

साथ ही ….सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है….. उसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है….!

इसीलिए…. सर पर शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने ……तथा, शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है…!!

आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी की बात यह है कि…..

जो बात आज के आधुनिक वैज्ञानिक लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च कर मालूम कर रहे हैं….. जीवविज्ञान की वो गूढ़ रहस्य की बातें ….. हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही जान ली थी….!

लेकिन… चूँकि विज्ञान की इतनी गूढ़ बातें ….. एक -एक कर हर किसी को समझा पाना बेहद ही दुष्कर कार्य होता ….

इसीलिए… हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने …… उसे एक परंपरा का रूप दे दिया ….. ताकि, उनके आने वाले वंशज ….. उनके इस ज्ञान से जन्म-जन्मान्तर तक लाभ उठाते रहें….. जैसे कि…. आज हमलोग उठा रहे हैं…!!

Post navigation

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *