दोस्तों सर्वप्रथम तो आज महाशिवरात्रि के महापर्व पर सभी को महाशुभकामनाएँ 
पुराणों के अनुसार आज ही के दिन (फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी) स्रष्टी उत्पति हुई ।
कुछ वर्षों पश्चात इसी तिथि को महादेव और भगवती पार्वती  का विवाह हुआ ।

तथा इसके कुछ वर्षों पूर्व अथवा पश्चात इसी तिथि को महादेव ने चन्द्र को दक्ष के श्राप से मुक्त किया और चन्द्र ने गुजरात के प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की ।

प्रार्थना है हमारे महादेव और भगवती पार्वती  इस घटिया युग में हमारा मार्गदर्शन करें ।


सर्वप्रथम आज की विज्ञान ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में क्या कहती है ये देखते है ।
बिग बेंग (महाविस्फोट) का सिधांत सर्वप्रथम Georges Lemaître ने 1920 में दिया | इसके पश्चात आधुनिक वैज्ञानिक Stephen Hawking ने इसी सिधांत पर गहन कार्य किया और बहुत  सही व्याख्या भी की जो काफी प्रसिद्ध हुई |

यह सिद्धांत कहता  है कि कैसे आज से लगभग १३.७ खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुयी थी जिसकी उर्जा अनंत थी |उस समय मानव, समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी अर्थात कुछ नही था ! इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रह्मांड १०३० गुणा फैल चुका था हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी ) बनने लगे थे |

ये बेचारे लुड्कते पुड्कते धीरे धीरे हमारे ग्रंथों में कही बातो पर ही आ रहे है | वो भी स्वतंत्र रूप से नही अपितु हमारे ग्रंथों को पढ़ कर ।

जबकि ये सारी थ्योरी सविस्तार वेदों, उपनिषदों, पुराणों आदि में वर्णित है ।

इन्होने सन 1700 के आस पास बताया पृथ्वी गोल है इससे पहले सपाट थी ।
पर संस्कृत और हिंदी में तो भू(गोल) सदा से ही कहते रहे है | क्या अपने कभी भूसपाट सुना??

इन्होने सन 1950 के आस पास बताया universe अंडाकार (egg-shaped) है ।
पर संस्कृत और हिंदी में तो ब्रह्माण्ड (ब्रह्म +अण्ड) सदा से ही कहते रहे है |
हमारे इन दो शब्दों ने ही उनके नाक में दम कर दिया था भाइयों !

इसीलिए तो लुच्चे मेकाले को 1835 में ब्रिटिश संसद में कहना पड़ा की हम ठहरे हाफ पेंट पहन कर  गलियों में खेलने वाले बच्चे, हम भारतियों की कमर कैसे तोड़ेंगे ? फिर एक खड़ा होकर जोर से बोला उनकी संस्कृती  पर चोट करके !!!  (यहाँ देखें)


वेद इस संसार के प्राचीनतम ग्रन्थ तथा ज्ञान के स्रोत्र है इसमें कोई संदेह नही। अब वेदों में ब्रह्माण्ड की उत्पति की जो व्याख्या है वो देखते है |

नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मंडल कर 129 वां सूक्त है. इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीक तथ्य बताता है. इसी कारण दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ |


नासदासींनॊसदासीत्तदानीं नासीद्रजॊ नॊ व्यॊमापरॊ यत् ।
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नभ: किमासीद्गहनं गभीरम् ॥१॥

उस समय अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था. सत्= भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः=स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था, और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन= कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे।

न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या।आन्ह।आसीत् प्रकॆत: ।
आनीदवातं स्वधया तदॆकं तस्माद्धान्यन्नपर: किंचनास ॥२॥

उस  समय में मृत्यु नहीं थी और अमृत = मृत्यु का अभाव भी नहीं था। रात्री और दिन का ज्ञान भी नहीं था उस समय वह ब्रह्म तत्व ही केवल प्राण युक्त, क्रिया से शून्य और माया (स्रष्टि उत्पत्ति की ईछा ) के साथ जुड़ा हुआ एक रूप में विद्यमान था, उस माया सहित ब्रह्म से कुछ भी नहीं था और उस से परे भी कुछ नहीं था।

आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीन्नान्यत्किञ्चचन । स ईक्षत लोकान्नु सृजा इति ॥ १ ॥ – ऐतरेय उपनिषद् 1.1.1
प्रारंभ में एक अकेला ही परमात्मा (तेज पुंज) विधमान था इसके अतिरिक्त किसी का कोई अस्तित्व नही था इसके पश्चात परमात्मा की ईछा से स्रष्टि हुई |

ॐ तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः ।
ॐ रूपी प्रस्फुटित नाद (ध्वनी) से पञ्च तत्वों की उत्पति हुई जिसमे सर्वप्रथम था आकाश | 

आकाशाद्वायुः । 
आकाश से वायु |
वायोरग्निः । 
वायु से अग्नि |
अग्नेरापः । 
अग्नि से जल |
अद्भ्यः पृथिवी ।
जल से पृथ्वी |
पृथिव्या ओषधयः |
 पृथ्वी से औषधियाँ |
ओषधीभ्योऽन्नम् | 
औषधियों से अन्न |
अन्नात्पुरुषः  | – तैत्तिरीय उपनिषद् 2.1.2
और अन्न से पुरुष उत्पन्न हुआ  |              
Explanation in English



इसलिए पृथ्वी को माता तुल्य कहा गया है परन्तु आजकल के लोग 1 नंबर के मुरख है प्रकृति को नष्ट करने पर तुले हुए  है  जबकि इसकी रक्षा उतनी अनिवार्य है जितनी हमारी माता की ।

 दोस्तों उपरोक्त बताया गया वर्णन पूर्णता तर्क संगत तथा विज्ञान संगत है देखें कैसे?
ओंमकार से महाविस्फोट जिसके फलस्वरूप निकली उर्जा सर्वत्र फेलने लगी और आकाश तत्व की उत्पति हुई जितने भी तारे, पिंड आदि हम देखते है वे सभी उसी महाविस्फोट के पश्चात अस्तित्व में आये । उनमे से अधिकतर गेसीय पिंड है सतह किसी किसी में बहुत अल्प है, किसी में तो बिलकुल नही इसप्रकार वायु तत्व अस्तित्व में आया ।vedicbharat.com
वायु तत्व के बाद अग्नि  की उत्त्पत्ति  वायु के घर्षण से हुई . जितने   भी तारे है वो सब वायु के गोले है और उनके  घर्षण से ही  अग्नि की उत्पत्ति हुई । इसका उदहारण आज भी हम प्रथ्वी के वायु मंडल में किसी उल्का के प्रवेश करने पर अग्नि की उत्पति होती है, देखते है। जिसे हम टूटता तारा कहते है | अतः वायु की उपस्थति में घर्षण से अग्नि प्रकट हुई |

 अग्नि से जल का निर्माण हुआ |
इसे हम विज्ञान के द्वारा समझ सकते है : एक बीकर में हाईड्रोजन  और एक बीकर में आक्सीजन ले कर  उन्हें एक नली से जोड़े . अब हम जैसे ही बेक्ट्री  के द्वारा स्पार्क  करेंगे हईड्रोजन के दो अणु आक्सीजन के एक  अणु  से मिल कर जल के एक अणु (H2O) का निर्माण कर देते है .  जल का निर्माण तब  तक नही होता जब तक की अग्नि/ऊष्मा न हो |
अंत में इन सभी तत्वों से पृथ्वी (ठोस/चट्टान आदि) की उत्पति हुई जब अत्यंत गर्म द्रव्य वायु की उपस्थिति में ठंडा होने लगता है तब वह ठोस रूप लेता है ठीक उसी प्रकार जैसे ज्वालामुखी से निकला लावा धीरे धीरे ठंडा होकर ठोस चट्टान बनता है |

शिवलिंग (shiva lingam) : 

वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
The whole universe rotates through a shaft called shiva lingam.
हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द  के कई अर्थ निकलते है 
जैसे: सूत्र के – डोरी/धागा,गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि |

अर्थ :- सम्पति, मतलब (मीनिंग),
उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है।
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)

ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ | हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है| 
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग  में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे  ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.) 
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी  अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है |


अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर  परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है |
e / c = m c  {e=mc^2}

इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि
का निर्माण करता है . हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था.

हमारे संतों/ऋषियों ने  जो हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है उन्होंने कभी यह  दावा नहीं किया कि यह उनका काम है. वे हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें बता रहे हैं जो उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है. यह  सार्वभौमिक ज्ञान  लगभग १३.७ खरब वर्ष  पुराना हमें  तमिल और संस्कृत जैसी महान  भाषाओँ में उपलब्ध होता है  . यह किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता ।  कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही । जैसे एक छोटा सा उदहारण देता हूँ : आज गूगल ट्रांसलेटर http://translate.google.com/ में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है किन्तु संस्कृत का नही । क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है ।
आप कहेंगे की संस्कृत इतनी इम्पोर्टेन्ट नही इसलिए नही होगी , यदि इम्पोर्टेन्ट नही तो नासा संस्कृत क्यों अपनाना चाहती है । और अपने नवयुवकों को संस्कृत सिखने पर जोर क्यू दे रही है ?
यहाँ देखें : http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl 
यह भी देखें :
http://vaidikdharma.wordpress.com/2013/01/16/संस्कृतsanskrit-को-मृत-भाषा-कहने/

हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा काफैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।

स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व निचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते है  |जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है   की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके ।
पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है  ।

[उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/सर्पिलाकार  स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है  | निम्न फोटो को देखें :

1. हमारी आकाश गंगा ।
2. हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) ।
3. ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ)।
4.ब्लैक होल की रचना ।
5. संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह । ये अभी तक रहस्य बने हए है, हजारों की संख्या में है, जिनमे से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है  ।
6. समुद्री तूफान ।
7. मानव डीएनए।
8. मानव  कुण्डलिनी (सर्पिलाकार /गोलाकार/ कुंडल
के समान ) शक्ति का प्रतिरूप । 9. जल धारा ।

10. जीवाश्म । 11. परमाणु की संरचना ।
 12. शंख की संरचना ।
 13. समुद्री जिव की गति ।


14. मकड़ी का जाला ।
15. वायु तूफान । 16. प्रकृति ।
 17. घोंघा । 18. बम विस्फोट से निकली
उर्जा की प्रतिरूप ।
19. ब्रह्माण्ड में होने वाले देनिक स्व विष्फोट ।     
 20. सरोवर में गिरी जल की बूंद का प्रतिरूप ।
21. लट । 22. पुष्प । 23. डीएनए की
न्युक्लियोटाइड संरचना ।
24. शिवलिंग

इस प्रकार की वृताकार संरचनाओं का सम्बन्ध ॐ से है । इसी लेख में आप आगे देखेंगे |

साभार: AwakenTheWorldFile: Part 2: The Spiral

दोस्तों उपरोक्त वर्णन पूर्णतया सत्य है इसके अतिरिक्त आप शिवलिंग की कहीं और इसके विपरीत (गलत सलत व्याख्या देखते है तो वह पूर्णतया खोटी है,  षड्यंत्रकारियों के षड्यंत्र, मूर्खों की भ्रमित बुद्धि के प्रलाप तथापि चंद सेंकडों वर्ष पूर्व लोगो द्वारा चलाई गई मजहबी दुकानों की उन्नति हेतु सनातन धर्म पर कीचड़ उछालने का नाकाम प्रयास  मात्र है  |
खैर ये तो देवों और असुरों का पुराना प्रेम है |

After travelling across India a wise white man said :
Ancient indians had great intellectual ability  “They had created universe in their temples
and second one said, “Indians are the most ignorant about their rich past and scientific traditions.”

अधिक जानकारी के लिए देखें :
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/shiva-lingam
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2012/05/lord-shiva-shivalingam-dance-of-shiva.html
http://ragsgopalan.blogspot.in/2012/01/time-space-series-part-15-shiva-lingam.html
http://www.stephen-knapp.com/shiva_lingam.htm
http://www.dhyanalinga.org/originoflinga_qa.htm

ॐ (ओ३म्) 
ॐ  ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।
इस प्रणवाक्षर (प्रणव+अक्षर) भी कहते है प्रणव का अर्थ होता है तेज गूंजने वाला अर्थात जिसने शुन्य में तेज गूंज कर ब्रह्माण्ड की रचना की |
वैसे तो इसका महात्म्य वेदों, उपनिषदों, पुराणों तथा योग दर्शन में मिलता है परन्तु खासकर माण्डुक्य उपनिषद में इसी प्रणव शब्द का बारीकी से समझाया गया है  |
माण्डुक्य उपनिषद  के अनुसार यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है. “म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. तथा यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिक भी है |
आसान भाषा में कहा जाये तो निराकार इश्वर को एक शब्द में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है |
तपस्वी और योगी  जब ध्यान की गहरी अवस्था में उतरने लगते है तो यह नाद (ध्वनी) हमारे भीतर तथापि बाहर कम्पित होती स्पष्ट प्रतीत होने लगती है | साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है |


हाल ही में हुए प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर सूर्य से आने वाली रश्मियों में अ उ म की ध्वनी होती है इसकी पुष्टि भी हो चुकी है ।

ॐ को केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानना उचित नही । जिस प्रकार सूर्य, वर्षा, जल तथा प्रकृति आदि किसी से भेदभाव नही करती, उसी प्रकार ॐ, वेद तथा शिवलिंग आदि भी समस्त मानव जाती के कल्याण हेतु है | यदि कोई इन्हें  केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानें  तो इस हिसाब से सूर्य तथा समस्त ब्रह्माण्ड भी केवल हिन्दुओं का ही हुआ ना ? क्योकि सूर्य व ब्रहमांड सदेव ॐ का उद्घोष करते है (उपरोक्त फोटो देखें)

 ॐ पर एक प्रयोग 

 Hans Jenny (1904) जिन्हें cymatics (the study of the interrelationship of sound and form) का जनक कहा जाता है, ॐ ध्वनी से प्राप्त तरंगों पर कार्य किया ।
 Hans Jenny ने जब ॐ ध्वनी को रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित किया (resonate om sound in sand particles) तब उन्हें वृताकार रचनाएँ तथा उसके मध्य कई निर्मित त्रिभुज दिखाई दिए | जो आश्चर्यजनक रूप से श्री यन्त्र से मेल खाते थे । इसी प्रकार ॐ की  अलग अलग आवृति पर उपरोक्त प्रयोग करने पर अलग अलग परन्तु गोलाकार आकृतियाँ प्राप्त होती है ।
http://www.youtube.com/watch?v=a0h9-b5Knvg

इसके पश्चात तो बस जेनी आश्चर्य से भर गये और उन्होंने संस्कृत के प्रत्येक अक्षर (52 अक्षर होते है जैसे अंग्रेजी में 26 है) को इसी प्रकार रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित किया तब उन्हें उसी अक्षर की रेत कणों द्वारा लिखित छवि प्राप्त हुई । 
इसके पश्चात Dr. Howard Steingeril ने कई मन्त्रों पर शोध किया और पाया की  गायत्री मन्त्र   सर्वाधिक शक्तिशाली है इसके द्वारा निर्मित तरंग देध्र्य   में 110,000 तरंगे/सेकंड की गति से प्राप्त हुई ।
http://mahamantragayatri.com/glossary.html 


निष्कर्ष :
1. ॐ ध्वनी को रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित करने पर प्राप्त छवि –> श्री यन्त्र 
2. जैसा की हम जानते है श्री यन्त्र संस्कृत के 52 अक्षरों को व्यक्त करता है |
3.  –>श्री यन्त्र–>संस्कृत वर्णमाला
4. ॐ –> संस्कृत 
संस्कृत के संर्भ में हमने सदेव यही सुना की यह इश्वर प्रद्त  भाषा है ।
 ब्रह्म द्वारा सृष्टि उत्पति समय संस्कृत की वर्णमाला का अविर्भाव हुआ !
यह बात इस प्रयोग से स्पस्ट है की ब्रह्म (ॐ मूल) से ही संस्कृत की उत्पति हुई ।
 अब समझ में आ गया होगा संस्कृत क्यों देव भाषा/ देव वाणी कही जाती है !! 


http://aumstar.com/the-big-bang-how-aum-created-the-cosmos/#2
http://shivyogi.weebly.com/srichakra.html


इसी प्रकार कुण्डलिनी योग में शरीर में स्थित सात चक्रों को अलग प्रतिक तथा उनके मंत्र दिए गये  है  |
जिसका वर्णन हमें इस प्रकार मिलता है की प्रथम चक्र का नाम मूलाधार चक्र है ये चार  पंखुड़ियों का  कमल होता है । और इसकी जाग्रति का मंत्र लं है ।
यदि इन सात चक्रों के सात मन्त्रों पर उपरोक्त प्रयोग किया जाये तो प्राप्त आकृतियाँ इसी प्रकार की होंगी जैसी चित्र में दर्शाई गई है |  इन सातों कमलों की प्रत्येक पंखुड़ी पर संस्कृत का एक अक्षर स्थित होता है अर्थात चक्र से
उच्चारित होता है |
 इसी तथ्य पर आधारित आधुनिक अल्ट्रासाउंड, इकोग्राफी तथा सोनोग्राफी आदि के माध्यम से  शरीर के अंगो से उच्चारित ध्वनी को  सुना जाता है और प्राप्त ध्वनी तरंगो की गणना के पश्चात रोग का पता लगाकर निदान किया जाता है ।
इस प्रकार 6 चक्रों तक में संस्कृत के कुल 52 अक्षर तथा अंतिम चक्र में पुरे 52 अक्षर होते है जिसका मूल मंत्र है ॐ । जैसा की हम ऊपर देख चुकें है ।

कई एक्स्ट्रा स्मार्ट ये सोचते होंगे की हमने पूरा शरीर चिर कर देख लिया एक भी कमल नही निकला । सारे ऋषि कल्पनाशील थे लोरे मारते थे !

इसी प्रकार महामृत्युञ्जय मंत्र तथा गायत्री मंत्र आदि द्वारा उनके यंत्रों की प्राप्ति होगी  ।

ऋषियों ने  इन  यंत्रों की संरचनाओं को जान लिया था । अब या तो वे दिव्य द्रष्टा थे अथवा ये प्रयोग वे हजारों वर्षों पूर्व  कर चुके थे जिस समय विदेशी डिनर के लिए भालू के पीछे भागते थे |

यन्त्र, कवच आदि को अंधविश्वास मानने वाले मूरखो अब अपना गन्दा मु खोल कर दिखाना तुम !

As a wise man said, “Indians are the most ignorant about their rich past and scientific traditions.”

[ ॐ  के उच्चारण के कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक लाभ हैं. यहाँ तक कि यदि आपको अर्थ भी मालूम नहीं तो भी इसके उच्चारण से शारीरिक लाभ तो होगा ही. यह सोचना कि ओ३म् किसी एक धर्म कि निशानी है, ठीक बात नहीं. अपितु यह तो तब से चला आता है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था! ओ३म् को झुठलाना और इसका प्रयोग न करना तो ऐसा ही है जैसे कोई यह कहकर हवा, पानी, खाना आदि लेना छोड़ दे कि ये तो उसके मजहब के आने से पहले भी होते थे! सो यह बात ठीक नहीं. ओ३म् के अन्दर ऐसी कोई बात नहीं है कि किसी  मजहब  का अनादर हो जाये. इससे इसके उच्चारण करने में कोई दिक्कत नहीं.

ओ३म् इस ब्रह्माण्ड में उसी तरह भर रहा है कि जैसे आकाश. ओ३म् का उच्चारण करने से जो आनंद और शान्ति अनुभव होती है, वैसी शान्ति किसी और शब्द के उच्चारण से नहीं आती. यही कारण है कि सब जगह बहुत लोकप्रिय होने वाली आसन प्राणायाम की कक्षाओं में ओ३म के उच्चारण का बहुत महत्त्व है. बहुत मानसिक तनाव और अवसाद से ग्रसित लोगों पर कुछ ही दिनों में इसका जादू सा प्रभाव होता है. यही कारण है कि आजकल डॉक्टर आदि भी अपने मरीजों को आसन प्राणायाम की शिक्षा देते हैं.

ओमकार के शारीरिक लाभ :

१. अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है.
२. अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं!
३. यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है.
४. यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है.
५. इससे पाचन शक्ति तेज होती है.
६. इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है.
७. थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं.
८. नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है. रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी.
९ कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मजबूती आती है.
इत्यादि इत्यादि!

ओमकार के मानसिक लाभ:

१. जीवन जीने की शक्ति और दुनिया की चुनौतियों का सामना करने का अपूर्व साहस मिलता है.
२. इसे करने वाले निराशा और गुस्से को जानते ही नहीं!
३. प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल और नियंत्रण होता है. परिस्थितियों को पहले ही भांपने की शक्ति उत्पन्न होती है.
४. आपके उत्तम व्यवहार से दूसरों के साथ सम्बन्ध उत्तम होते हैं. शत्रु भी मित्र हो जाते हैं.
५. जीवन जीने का उद्देश्य पता चलता है जो कि अधिकाँश लोगों से ओझल रहता है.
६. इसे करने वाला व्यक्ति जोश के साथ जीवन बिताता है और मृत्यु को भी ईश्वर की व्यवस्था समझ कर हँस कर स्वीकार करता है.
७. जीवन में फिर किसी बात का डर ही नहीं रहता.
८. आत्महत्या जैसे कायरता के विचार आस पास भी नहीं फटकते. बल्कि जो आत्महत्या करना चाहते हैं, वे एक बार ओ३म् के उच्चारण का अभ्यास ४ दिन तक कर लें. उसके बाद खुद निर्णय कर लें कि जीवन जीने के लिए है कि छोड़ने के लिए!

ओमकार के अध्यात्मिक लाभ :

१. इसे करने से ईश्वर से सम्बन्ध जुड़ता है और लम्बे समय तक अभ्यास करने से ईश्वर को अनुभव (महसूस) करने की ताकत पैदा होती है.
२. इससे जीवन के उद्देश्य स्पष्ट होते हैं और यह पता चलता है कि कैसे ईश्वर सदा हमारे साथ बैठा हमें प्रेरित कर रहा है.
३. इस दुनिया की अंधी दौड़ में खो चुके खुद को फिर से पहचान मिलती है. इसे जानने के बाद आदमी दुनिया में दौड़ने के लिए नहीं दौड़ता किन्तु अपने लक्ष्य के पाने के लिए दौड़ता है.
४. इसके अभ्यास से दुनिया का कोई डर आसपास भी नहीं फटक सकता. मृत्यु का डर भी ऐसे व्यक्ति से डरता है क्योंकि काल का भी काल जो ईश्वर है, वो सब कालों में मेरी रक्षा मेरे कर्मानुसार कर रहा है, ऐसा सोच कर व्यक्ति डर से सदा के लिए दूर हो जाता है. जैसे महायोगी श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध के वातावरण में भी नियमपूर्वक ईश्वर का ध्यान किया करते थे. यह बल व निडरता ईश्वर से उनकी निकटता का ही प्रमाण है.
५. इसके अभ्यास से वह कर्म फल व्यवस्था स्पष्ट हो जाती है कि जिसको ईश्वर ने हमारे भले के लिए ही धारण कर रखा है. जब पवित्र ओ३म् के उच्चारण से हृदय निर्मल होता है तब यह पता चलता है कि हमें मिलने वाला सुख अगर हमारे लिए भोजन के समान सुखदायी है तो दुःख कड़वा होते हुए भी औषधि के समान सुखदायी है जो आत्मा के रोगों को नष्ट कर दोबारा इसे स्वस्थ कर देता है. इस तरह ईश्वर के दंड में भी उसकी दया का जब बोध जब होता है तो उस परम दयालु जगत माता को देखने और पाने की इच्छा प्रबल हो जाती है और फिर आदमी उसे पाए बिना चैन से नहीं बैठ सकता. इस तरह व्यक्ति मुक्ति के रास्तों पर पहला कदम धरता है! ]
साभार : vaidikdharma.wordpress.com/2013/01/16/ओ३म्-ॐ-मानवता-का-सबसे-बड़ा-धन  

शायद अब भी हम उपरोक्त को सत्य न माने, क्योकिं हम ठहरे सफ़ेद मेकाले के बनाये हुए एजुकेशन सिस्टम को अपनाने वाले, अंग्रेजी स्कूलो में पढ़े हुए, five point someone की चोपाईयाँ पढने वाले !

यही सब हमें गोरी चमड़ी वाले टीवी पर मु फाड़ कर कह दे तो झट से मान लेते है और तुलसी दास जी यदि सूर्य और पृथ्वी के बिच की दुरी  बिना किसी यन्त्र के बता दें तो नही मानते ।

इस दुष्ट मेकाले जैसे निचो ने कानून बना कर वेद, उपनिषदों को पढाई से बहार करवा दिया | क्योंकि भारत को धर्म निरपेक्ष बनाना था ना !
इसका अर्थ है क्या सूर्य को कटगरे में  खड़ा करना पड़ेगा ? तू ॐ ॐ क्यों करता है बे ? तू तो communal है !
 इस दुष्ट मेकाले ने अपना दरिद्र इतीहास हम पर भी थोपा की आज से कुछ हजार वर्ष पूर्व तक मानव जंगलो में रहता था, जानवर खाता  था । तो कुरुक्षेत्र में प्रयुक्त हुए परमाणु बम क्या पेड़ पर उगे थे ?
 यदि महाभारत कल्पनाशील लोगो का लिखा काव्य मात्र है तो Julius Robert Oppenheimer ने
1933 में दीदे फाड़ कर  भगवत गीता और महाभारत क्यों पढ़ी ? और अपने एटम बम का नाम उन्होंने त्रिदेव (Trinity) क्यों रखा ??
>>प्राचीन भारत में हुए परमाण्विक युद्ध 
 
बेकसूर जानवरो को खाने की फेशन तो लाये ही विदेशी थे भारत में । क्योंकि भारत के संपर्क में आने से पूर्व वे जाहिल किस्म के थे उन्हें पता ही नही था की क्या खाने योग्य है और जो खाने योग्य है उसे उगाना पड़ता है ।

यदि भारतीय आदिवासी थे तो इन आदिवासीयों  की लिखी किताबों में ऐसा क्या था जो निकोल टेस्ला, श्रोडेंगर, आइंस्टीन, नील्स बोहर सभी हस्तियों ने वेदों तथा उपनिषदों का अध्यन कर अपना समय बर्बाद किया  ?

तो क्या कोई आदिवासी जो दोनों टाइम जानवर खाता हो, वो मात्र एक ही श्लोक से पृथ्वी का भोगोलिक मानचित्र बता सकता है ?

हमने तो सुना था क्रिस्टोफ़र कोलंबस सारी  जिन्दगी फिरता रहा फिर एक मानचित्र बनाया वो भी आधा अधुरा !

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